हिंदी दिवस पर विशेष: डॉ मुनिराम सकलानी ‘मुनीन्द्र’ की एक रचना
डॉ मुनिराम सकलानी ‘मुनीन्द्र’
देहरादून, उत्तराखंड
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राष्ट्र भाषा हिन्दी
जन-गण-मन की अभिलाषा राष्ट्र भाषा हिन्दी
भारत मां के ललाट पर चमकती यह स्वर्ण बिन्दी
भारतीय भाषाएं हैं इसकी बहिनें
जैसे पंजाबी-सिन्धी,
हृदय भाव समान सभी का, ऐक्य भाव से हैं जिन्दी।
भारतीय अस्तिमा व स्वाभिमान की यह सुदृढ़ कडी,
सांस्कृतिक विरासत और
जीवन-मूल्यों से जुडी,
विदेशों में फैल रही है मारीशस-गुयाना इसके सबूत,
प्रेम व सौहार्द से करती राष्ट्र एकता को मजबूत।
यह वह वाणी, आजादी का सन्देश सूदूर जिसने फैलाया,
गांधी, सुभाष, पटेल, बिनोबा आदि ने जिसे अपनाया,
शहरों से सूदूर गांव तक जन-जन को इसने जगाया,
पराधीनता के प्रतीक अंग्रेजों को भारत से दूर भगाया।
देश हुआ आजाद मगर भाषा की अब भी व्याप्त गुलामी,
सम्मान मिले कैसे विदेशों में बिन स्वभाषा और स्ववाणी,
बिन अंग्रेजी के क्या चीन, जापान, रूस बढे न पथ पर ,
स्वभाषा को अपनाने से, क्या गौरव स्वदेश…
कवि परिचय
डॉ मुनिराम सकलानी ‘मुनीन्द्र‘
एमए (हिन्दी, अंग्रेजी), एलएलबी, एलटी, पीजी डिप्लोमा-पत्रकारिता, आगरा विश्वविद्यालय से पीएचडी।
पूर्व सचिव, उत्तराखंड हिन्दी अकादमी
पूर्व निदेशक, उत्तराखंड भाषा संस्थान
सेवानिवृत्त उप निदेशक (राजभाषा) आयकर निदेशालय दिल्ली।
साहित्य एवं राजभाषा के क्षेत्र में एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित।
सम्मान-दून रत्न, उत्तराखंड रत्न, सुमित्रानन्दन साहित्य श्री सम्मान मुम्बई से प्राप्त, गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग से ‘ राजभाषा सम्मान’ अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन सिगांपुर में ‘हिन्दी गौरव सम्मान’, विश्व हिन्दी सम्मेलन जोहान्सबर्ग (द०अफ्रीका) में ‘सृजन श्री’ सम्मान आदि अनेकों सम्मान प्राप्त किए।