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होलिका दहन भद्रा नक्षत्र में न करें, जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत से जोड़कर देखा जाता है। आज (रविवार) होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा।

शब्द रथ न्यूज (ब्यूरो)। होली का त्यौहार होली अब मुख्य रूप से दो दिन मनाया जाता है। बड़ी होली यानी होली का मुख्य त्यौहार और छोटी होली यानी होलिका दहन। छोटी होली वाले दिन होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत से जोड़कर देखा जाता है। होलिका दहन भद्रा नक्षत्र में नहीं किया जाता, इसलिए शुभ मुहूर्त देखकर ही होलिका दहन करें।

इस बार होलिका दहन का पर्व 28 मार्च को मनाया जाएगा। शाम के समय प्रदोष काल में होली जलाई जाएगी। इसके बाद अगले दिन यानी 29 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी, जिसे धुलण्डी नाम से भी जाना जाता है।

पूजन विधि
होलिका दहन जिस स्थान पर करना है, उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें। पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें। साथ में नई फसलें भी रखी जाती हैं। जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां। कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें।
ये मंत्र पढ़ें- अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः। अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।। और पूजन के बाद अर्घ्य अवश्य दें।

होलिका दहन मुहूर्त
होलिका दहन शुभ मुहूर्त में करने की सलाह दी जाती है। भद्रा के समय में होलिका दहन नहीं किया जाता है। इस बार दोपहर 1 बजे तक भद्रा समाप्त हो जाएगा। जिस कारण आप प्रदोष काल शाम के समय में 6 बजकर 37 मिनट से 8 बजकर 56 मिनट के बीच होलिका दहन कर सकते हैं।

क्यों मनाई जाती है होली
शास्त्रों के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी। भगवान विष्णु की भक्ति से हटाने के लिए उसने प्रह्लाद को कई तरह की यातनाएं दीं। लेकिन, इतना कुछ सहने के बाद भी उसका पुत्र नहीं माना तो अंत में उसने अपनी बहन होलिका को अपने पुत्र को सौंप दिया। होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रह्लाद को जलाने के उद्देश्य से अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी। लेकिन, प्रह्लाद की भक्ति के तप से खुद होलिका ही आग में जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इस प्रकार होली का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

होली की पूजन विधि
रंग वाली होली के दिन सुबह नित्‍य कर्मों से निवृत्‍त होकर पितरों और देवताओं की पूजा करें। होलिका की राख की वंदना करके उसे अपने शरीर में लगा लें। इसके बाद मां पृथ्‍वी को प्रणाम करें। सभी पितरों को नमन करते हुए ईश्‍वर से प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में सुख-समृद्धि बनाए रखें।

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