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हरीश कंडवाल मनखी की कलम से… मैं एक बेल हूँ जो अक्सर पेड़ो पर लहराती हूँ..

मैं एक बेल हूँ जो अक्सर पेड़ो पर लहराती हूँ…

मैने बेल से पूछा कि तुम्हे कौन लपेटता है, तुम्हारे हाथ तो है नही। तुम्हे रास्ता कौन बताता है तुम्हारे आंख तो है ही नही, तुम्हे कौन लपेटता है तुम्हारे हाथ तो है नही, तुम्हे कैसे पता कि तुमने जिसका सहारा लिया है वह तुम्हें सम्भाल लेगा। मेरे इस तरह के सवाल को सुनकर बेल ने लहराते हुये कहा कि प्रकृति ने जब दुनिया बसाई तब उसने हर एक चीज में ऐसे गुण भर दिए, जिसके बल पर वह कभी तो खुद ही आगे बढ़ जाता है, औऱ कभी कभी सहारा की जरूरत पड़ती है।

मुझे नही मालूम कि मैं मुझे कौन लपेटता है। लेकिन, इतना जानती हूँ कि मेरे अंदर आत्मविश्वाश है कि मुझे आगे बढ़ना है औऱ आगे बढ़ने के लिए मुझे किसी का थोड़ा सहारा चाहिए। लेकिन, मैं जिस चीज का सहारा लेती हूँ उसे भी अपना बना लेती हूँ क्योंकि मैं एक लता हूँ। लता में न सिर्फ अपनाने का गुण होता है बल्कि जिसे अपनाती हूँ उसे भी हरा-भरा कर लेती हूँ। मुझे तो सूखे पेड़ की टहनी भी अपना लेती है, तो हरे पेड़ की शाखाएं भी अपने गले का हार बना लेती हैं। मैं चाहे किसी के घर के गेट की स्वागत बेल हूँ या फिर किसी की सब्जी की बेल, मुझमें लपटने की जो ताकत है वह इस कायनात ने दी है, मैंने हमेशा यही सिखाया की चाहे कोई कितना भी बुरा हो उसकी बुराइयों से दूर रहो। लेकिन, उससे नही।

अब देखो मैं अमर बेल हूँ या अंगूर की बेल हूँ। लेकिन, कांटेदार पेड़ को भी साथ लेकर चलती हूँ तो पीपल आम का भी आलिंगन करती हूँ क्योकि मैं एक सुंदर सी बेल हूँ। मुझे तो बस लिपटना है बिना किसी स्वार्थ के, मुझे तो सजना है दुसरो के लिए। मैं छोटे पौधों को धूप-छांव से बचाती हूँ तो कभी तपती धूप से। इसलिए मुझे हर कोई अपने साथ ले लेता है और सब मुझे खुद ही अपने पर लपेट देते हैं।

मेरी आँखें मेरी आत्मा है। मैं ह्रदय में प्रभु को आत्मसात कर लेती हूँ और उनके दिव्य नयनो से देखती हूँ। देखा होगा तुमने जब मैं आगे बढ़ने के लिये अग्रसर रहती हूँ तब मुझमें अनेको फांके फूटी हुई होती है औऱ उन्मुक्त होकर गर्दन ऊपर करके प्रभु को याद करते हुए सारे संसार की सुख की कामना करती हूँ। देखों न ये प्रकृति ही तो मेरी दिव्य दृष्टि है। मैं बिना विचलित हुए अपने साथ सबको लेकर चलती हूँ। आंखों से तो दुनिया का हर भला-बुरा चेहरा दिखता है, हर वो चीज दिखती है जिसे कोई देखना नही चाहते। लेकिन, मेरी अंतरात्मा की आँखे सिर्फ वही देखती हैं जो मुझे पहचानता है या अपनाता है।

मेरी आँखें नहीं है। लेकिन, मुझे रास्ता पेड़ की शाखाएं, तार, सुबह की सूरज की पहली किरण चाँदनी की ठंडक ये सब तो मेरी आँखें ही तो है, जो मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं। यदि मुझ में आंखे होती तो तब शायद मुझमें उन्माद आ जाता और मैं हर छोटी बेल या लता को वंही समाप्त कर देती। क्योकि, तब मुझमें ईर्ष्या की भावना आ जाती और मैं दुराग्रह से उस बेल को नही पनपने देती, इसलिये मैं मन की अंतरात्मा की आंखों से देखती हूँ हर किसी का बिना भेदभाव का आलिंगन कर लेती हूँ।

मुझे पता है मैंने जिसका सहारा लिया है वह मुझे भंवर में नही छोड़ेगा। क्योकि, मैं बिना स्वार्थ के उसे अपना बनाती हूँ। क्योकि, मेरा स्वभाव है सबके सुख-दुख में छाँव बनकर रहना। सहारा बनना और देना हर किसी के भाग्य में नही होता। देखो खजूर के पेड़ों को बहुत लंबा होता है। लेकिन, क्या वह किसी का सहारा बन पाता है। मैं जब किसी का सहारा लेती हूँ तो उसको भी सहारा देती हूं।

आपने ही पूछा था कि जिसने आपको सहारा दिया वह तुम्हे सम्भाल लेगा। मुझे यह तो नही पता कि वह कब तक मुझे सम्भाल पायेगा। लेकिन, इतना विश्वाश है कि अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूर सम्भालेगा। बड़े आंधी तूफान में बारिश में हम एक दूसरे की ताकत बनेंगे। हालाँकि, मेरा भरा उस टहनी या शाखा के लिए असहनीय जरूर होगा। लेकिन, झंझावतों से झूझने की क्षमता रखती हूं। क्योंकि, मैं एक बेल हूँ। जब मुझमें फूल आते हैं तो मैं पूरी कायनात का श्रृंगार करती हूँ। मेरी लताओ पर हर मौसम हर ऋतु में कोई न कोई फूल जरूर शोभायमान होता है। मेरा स्वभाव भी देश, काल  परिस्थितियों के अनुसार होता है। सब्जी की बेल हो, सजावट की बेल हो या फिर जंगलों में पेड़ो की शोभा।

मुझे तो प्रकृति और पेड़ो के साथ मिलकर रहना अच्छा लगता है। क्योंकि, मैं प्रकृति की दी हुई एक माला हूँ। जब मेरा जीवन काल समाप्त हो जाता है तो मैं स्वयं ही नष्ट हो जाती हूँ। लेकिन, जिसने मुझे सहारा दिया है उसको आंच नही आने देती हूँ। क्योंकि, मैं एक लता हूँ, आपके चौखट की आपके आँगन की आपके खेत की आपके जंगल की और आपकी सृष्टि की।

©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।

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