इगास बग्वाल को लेकर तथ्य कम बकवास ज्यादा, शुभ नहीं अज्ञानता
वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
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-गढ़वाल क्षेत्र में मनाई जाने वाली इगास बग्वाल मानने को लेकर लिखे/कहे/बताए जा रहे तथ्य झूठ अधिक, सत्य कम। कुछ भी लिखने की मानसिकता इसके लिए अधिक जिम्मेदार
-आमजन को दी जा रही गलत/भ्रमित करने वाली जानकारी। इसी तरह झूठ प्रचारित करने से बिगड़ता है धर्म, पर्व, परम्परा, रीति-रिवाज का स्वरूप। स्थापित होती है गलत मान्यता
दीपावली पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। लेकिन, उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के कुछ हिस्सों में दीपावली (deepawali) मनाने का अंदाज विशिष्ट व निराला है। दीपावली (बग्वाल) के मुख्य पर्व के साथ ही छोटी बग्वाल, इगास बग्वाल और रिख बग्वाल भी यहां मनाई जाती है। इगास बग्वाल (igas bagwal) मुख्य दीपावली के ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है। इस वर्ष 25 नवम्बर यानी आज इगास बग्वाल का पर्व है।
इगास बग्वाल मुख्य रूप से उत्तराखंड के जनपद टिहरी गढ़वाल (district Tehri garhwal) में मनाई जाती है। वैसे पौड़ी जनपद के कुछ क्षेत्रों में भी इगास मनाई जाती है। लेकिन, वह बहुत कम क्षेत्र है। यह पर्व मुख्य रूप से टिहरी गढ़वाल में ही मुख्य रूप से मनाया जाता है।
इगास बग्वाल मानने को लेकर कई तरह की किवदंतियां हैं। लेकिन, उनमें सभी विश्वनीय नहीं हैं। कुछ तो पूरी तरह से मनगढ़ंत हैं या यूं कहें कि कुछ भी लिखने की भूख (अज्ञानता के साथ) के कारण प्रचलित हो गई हैं। इनमें है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम (bhagwan Shri ram) के अयोध्या आने की खबर। लिखा/कहा जा रहा है जिन क्षेत्रों में श्री राम के अयोध्या आने की खबर 11 दिन बाद मिली, वहां इगास बग्वाल मनाई जाती है, जो कि पूरी तरह झूठ है, अविश्वसनीय है।
मैदानी क्षेत्र से टिहरी पास, गढ़वाल के अन्य क्षेत्र दूर
टिहरी जनपद के जिस क्षेत्र में इगास बग्वाल मनाई जाती है, उसकी मैदानी (देहरादून ऋषिकेश) क्षेत्र से दूरी बहुत कम है। जबकि, गढ़वाल के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग की दूरी अधिक है। फिर ऐसे कैसे हो सकता है बदरीनाथ व गंगोत्री जैसे दूरस्थ क्षेत्र में श्री राम के अयोध्या आने की खबर पहले पहुंच गई और मैदान से नजदीकी क्षेत्र वर्तमान टिहरी में सूचना बाद में पहुंची। इसलिए यह तथ्य कि श्री राम के अयोध्या आने की सूचना देरी से मिलने के कारण इगास बग्वाल मनाई जाती है, विश्वसनीय नहीं है। गौरतलब है इगास बग्वाल वाले क्षेत्र में मुख्य दीपावली का पर्व मनाया जाता है, इससे भी उजागर होता है कि इगास बग्वाल श्री राम के आने की सूचना मिलने के कारण नहीं मनाई जाती। उसकी सूचना पहले हो गई थी, इसलिए दीपावली का मुख्य पर्व मनाया गया।
दापाघाट (तिब्बत) युद्ध का रिखोला लोदी ने किया नेतृत्व
इगास बग्वाल मानने का दूसरा तथ्य बताया/लिखा/कहा जा रहा है कि गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी (madho Singh Bhandari) के नेतृत्व में दीपावली के समय गढ़वाल राज्य की सेना ने दापाघाट (तिब्बत) (dapaghat Tibbat) का युद्ध जीता था। विजय प्राप्त कर गढ़वाल राज्य की सेना (army) दीपावली के ठीक 11वें दिन अपने घर (गढ़वाल) पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में दिन दीपावली (बग्वाल) मनाई थी। यह भी पूरी तरह झूठ है, पहली बात यह है कि दापाघट युद्ध में सेनापति माधो सिंह भंडारी नहीं थे, बल्कि रिखोला लोदी (rikhola Lodi) उस युद्ध में गढ़वाल के सेनापति थे और उनके नेतृत्व में युद्ध जीता गया था। दूसरी बात, दापाघट युद्ध का समय 1646-1676 के बीच का है, उस वक्त टिहरी रियासत (टिहरी गढ़वाल) अस्तित्व में ही नहीं थी। टिहरी गढ़वाल 1815 में अस्तित्व में आया। दापाघाट युद्ध के समय पूरा गढ़वाल एक ही राज्य था, यदि उस वक़्त सेना की जीत पर इगास बग्वाल मनाई जाती तो वह संपूर्ण गढ़वाल क्षेत्र में मनाई जाती न कि 1815 में अस्तित्व में आई टिहरी रियासत में।
देव प्रबोधिनी एकादशी और इगास बग्वाल
तीसरा तथ्य देव प्रबोधिनी एकादशी (dev prabidhini akadashi) और इगास बग्वाल। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या फिद देवोत्थान एकादशी कहते हैं। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु (bhagwan Vishnu) चतुर्मास की निद्रा के बाद जाग जाते हैं और फिर से सृष्टि से सभी कार्य देखने लगते हैं। इस एकादशी को सबसे बड़ी एकादशियों में से एक माना जाता है। कुछ विशेष नियमों का पालन भी करना पड़ता है। इस दिन माता तुलसी (Mata tulsi) की पूजा होती है और इस दिन उनका शालिग्राम (shaligram) से विवाह करवाया जाता है। इस दिन से सभी शुभ कार्य भी शुरू हो जाते हैं। क्यूंकि देव प्रबोधिनी एकादशी दीपावली पर्व के नजदीक आती है। इस लिहाज से उसे दीपावली (इगास बग्वाल) के रूप में मनाया जाना माना जा सकता है। दीपावली पर्व के लिए लाई गई सामग्री भी काफी मात्रा में बच जाती है। उसका भी इगास बग्वाल में प्रयोग हो जाता है। लेकिन, प्रश्न फिर भी रहता है कि संपूर्ण गढ़वाल में क्यों नहीं मनाया जाता। इसमें मत यह हो सकता है उस वक्त जब इगास बग्वाल मानना शुरू किया गया होगा, उस वक्त इस क्षेत्र में अधिक उत्सवधर्मी लोग रहे होंगे या भगवान विष्णु के उपासक इस क्षेत्र में अधिक रहे होंगे, इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु के निद्रा से जागने और फिर से काम दोबारा शुरू करने को लेकर उत्सव मनाना शुरू किया हो। यह दिन दीपावली (बग्वाल) के नजदीक था, इसलिए ही इसे बग्वाल (इगास) नाम दिया गया होगा।
इगास बग्वाल का पर्व जिस खुशी में भी मनाया जाता हो। लेकिन, यह विशिष्ट है और दीपावली के बाद भी उत्साह बनाए रखता है। भारत वर्ष में उत्सव मनाने की यह सनातन परम्परा सदैव बनी रहे।