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गोपाष्टमी पर विशेष.. जब भगवान कृष्ण बोले, मैय्या गौ को पादुका पहनाओ.. तब मैं पहनूंगा

अमित नैथानी मिट्ठू
ऋषिकेश, उत्तराखंड
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-भगवान कृष्ण जब तक वृंदावन में रहे उन्होंने कभी भी पैरों में पादुका नहीं पहनी

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन था। कान्हा 5 वर्ष 2 माह के हो गये हैं। माता यशोदा ने कन्हैया का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में पादुका पहनाने लगी तो कान्हा ने मना कर दिया। कहने लगे..मैया ! यदि मेरी गौ पादुका नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूँ ? यदि पहना सकती हो तो सारी गौओं को पादुका पहना दो।
कृष्ण जब तक वृंदावन में रहे उन्होंने कभी भी पैरों में पादुका नहीं पहनी। अब भगवान अपने सखाओं के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते। यह वन गौओं के लिए हरी-हरी घास से युक्त व रंग-बिरंगे पुष्पों की खान हो रहा था। आगे-आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए कन्हैया तदन्तर बलराम और फिर कन्हैया का यशगान करते ग्वाल-बाल।इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। तब से गौ चारण लीला करने लगे। भगवान कृष्ण का “गोविन्द” नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा़ था, क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायों व ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्टका अंगुली पर उठाकर रखा था।

इंद्र ने कृष्ण को गोविंद कहकर पुकारा

आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आया था, उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर संबोधित किया। उसी दिन से कृष्ण को गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा। इसी दिन से कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा। आज ही के दिन से कन्हैया ने गौ चराना प्रारंभ किया था।

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