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कवि जसवीर सिंह हलधर की शानदार ग़ज़ल.. जरूर पढ़िए.. नाम मजहब पर कई बीमारियाँ हैं देश में..

जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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ग़ज़ल (हिंदी)
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धर्म भी निरपेक्ष यह अय्यारियाँ हैं देश में।
नाम मजहब पर कई बीमारियाँ हैं देश में।

सिर्फ बातें प्यार की होती दिखावे के लिए,
देखिये गृह युद्ध सी तैयारियाँ हैं देश में।

होंठ पर रूखी गमी है आँख में सूखी नमी,
हर गली हर मोड़ पर मक्कारियाँ हैं देश में।

तन तिरंगे में रँगा नहिं मन तिरंगे में रँगा,
कुछ पड़ौसी घाट की पनिहारियाँ हैं देश में।

देश यदि निरपेक्ष है तो धार्मिक कानून क्यों,
हिंदुओं के साथ क्यों गद्दारियाँ हैं देश में।

पांच सदियों से हमारे राम जी ही कैद थे,
फैसला आया नयी किलकारियां हैं देश में।

अब कमल कीचड़ खिला है दिलजले हैरान है,
लग रहा है खिल गयी फुलवारियां हैं देश में।

हिंदुओं को गालियां निरपेक्षता की मापनी,
हिन्द का दिल चीरती कुछ आरियाँ हैं देश में।

अर्थ के बिन देश रथ की चाल धीमी हो रही,
बिक रहीं हैं कंपनी दुसवारियाँ हैं देश में।
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..22/02/2021
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