कवि जसवीर सिंह हलधर की एक गज़ल.. शत्रु गर आगे बढ़ा तो जा मिलेगा राख में..
जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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ग़ज़ल (हिंदी)
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पूस की हो सर्दियां या गर्मियां बैसाख में।
कृष्ण हो या शुक्ल हो तैयार हैं हर पाख में।
कारगिल, डुकलाम हो या जंग हो लद्दाख में।
शत्रु गर आगे बढ़ा तो जा मिलेगा राख में।
हम उसी बाली के वंशज और अंगद भ्रात हैं,
माह छः रावण रखा जिसने दबाकर काख में।
तीन कपि बापू तुम्हारे राह भटके आजकल,
चीन में कुछ पाक में बट्टा लगते साख में।
फौज के आगे अड़े यदि चीन हो पाक हो,
भारती के शेर सौ भूसा भरेंगे लाख में।
टैंक बंदूकें हमारी शान हैं शृंगार है,
युद्ध के आलेख अंकित तोप के सूराख में।
कौन है इस विश्व में जो जीत पायेगा हमें,
हर तरह के शस्त्र चालन हैं हमारी जाख में।
वक्त है अब भी सँभल जाओ अभागे सरफिरों,
खोज मत अंगूर “हलधर” शुष्क होते दाख में।
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सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशित…..01/03/2021
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