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वरिष्ठ कवि जय कुमार भारद्वाज ‘अरुण’ का गीत.. पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी.. फिर ढाई आखर कौन गुने

जय कुमार भारद्वाज अरुण
देहरादून, उत्तराखंड
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मानवता
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मानव मानव से कटा आज
मानव हिस्सों में बंटा आज
फिर मानवता की कौन सुने
पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी
फिर ढाई आखर कौन गुने।

प्यारे भारत की धरती पर
होली से ईद गले मिलती
इस प्यारी पावन वसुधा पर
थी खुशियों की कलियाँ खिलती
बिखरी सब कलियाँ यहाँ वहाँ
बतला दो कोई कौन चुने।
पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी
फिर ढाई आखर कौन गुने।

रसखान कृष्ण के भक्त बने
भगति की महिमा गाई है
गुप्त मैथिलीशरण हुए
काबा की कथा सुनाई है।
पर कबिरा की झीनी चादर
बतला दो कोई कौन बुने ।
पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी,
फिर ढाई आखर कौन गुने।

था रँग एक उनके खूँ का
क्या शेखर क्या अब्दुल हमीद
तेरे मेरे का भेद नहीं
हो गए देश पर वे शहीद
हम भूले उन दीवानों को
जो दीवारों में गए चुने।
पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी,
फिर ढाई आखर कौन गुने।

गाँधी गौतम की भूमि पर
भूचाल भयानक आया है
है धूप सुनहली कहीं नहीं
हर ओर कुहासा छाया है ।
मैं खड़ा क्षितिज पर सोच रहा
कोई प्रकाश की किरण बुने।
पोथी पढ़ पण्डित हुए सभी
फिर ढाई आखर कौन गुने।।

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