वरिष्ठ कवि जय कुमार भारद्वाज का एक नवगीत
जय कुमार भारद्वाज
देहरादून, उत्तराखंड
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नगर एवं ग्राम्य जीवन की विसंगतियों को रेखांकित करता एक गीत
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जीवन में झेले हैं अभाव
भावों का मोल लगाऊँ तो कैसे?
वासन्ती सपने टूट गये
मेरे अपने सब रूठ गए
मैं जिन्हें खोजता रहा यहाँ
वे दूर किनारे छूट गये।
टूटी नदिया के बीच नव
उस पार बताओ आऊँ
तो कैसे?
भाई से भाई दूर यहाँ
हर कोई मद में चूर यहाँ
नातों की बदली परिभाषा
सब लगते हैं मज़बूर यहाँ
घायल अपनों ने किये पाँव
मैं द्वार तुम्हारे आऊँ
तो कैसे?
खेतों से छूट गया नाता
मन उनको खोज नहीं पाता
अब सूनी बैठक दद्दा की
भोलू का पत्र नहीं आता
रूठा है मुझसे मेरा गाँव
सरसों के फूल खिलाऊँ
तो कैसे?
जीवन में झेले हैं अभाव
भावों का मोल लगाऊँ
तो कैसे?