कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष…. कवि अमित नैथानी मिट्ठू की कविता
अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’
ऋषिकेश, उत्तराखंड
—————————————–
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ उपलक्ष पर भगवती गंगा के चरणों में समर्पित शब्दरूपी भेंट (रचना ) …….
कल-कल छल-छल निनाद करती,
त्रिपद गामिनी माँ भगवती गङ्गे।
मानवजन का कल्याण करती,
पतित पावनी माँ भगवती गङ्गे।।
विष्णु पद से उद्धृत हुई तुम,
शंकर जटा समाई हो।
भगीरथ ने ध्याया तुमको,
तब इस धरा पर आई हो।।
ऋषि-मुनियों की अधिष्ठात्री तुम,
भक्ति ज्ञान का संचार हो।
पाप संताप तुम सबके धोती,
जीवमात्र का आधार हो।।
हिमशिखरों से प्रवाहित होकर,
चंचल गति से बहती हो।
मूक शिला भी धन्य हो जाती,
जब उनका स्पर्श तुम करती हो।।
हर युग में हम मानवों ने तेरा,
स्वार्थ हेतु उपयोग किया।
तेरी अविरल धारा को हे ! माँ,
हमने पापों से विदीर्ण किया।।
कितनी स्वच्छ और निर्मल हो तुम,
हम जड़मति क्यों समझ न पाए।
कूड़ा करकट अन्य गन्दगियाँ,
तेरे तट पर फेंक आये।।
हमारी संस्कृति, हमारी धरोहर,
बूँद-बूँद जीवन का आधार है।
लुप्त न हो यह अविरल धारा,
इसका प्रवाह ही सनातन का संचार है।।
©® अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’
—————————————————
सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..29/11/2020
नोट: 1. उक्त रचना को कॉपी कर अपनी पुस्तक, पोर्टल, व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक, ट्विटर व अन्य किसी माध्यम पर प्रकाशित करना दंडनीय अपराध है।
2. “शब्द रथ” न्यूज पोर्टल का लिंक आप शेयर कर सकते हैं।