कवि चंदेल साहिब की एक रचना, स्वतंत्र तुम्हारे ख्यालों से.. मुझको कोई भी द्वेष नहीं
कवि चंदेल साहिब
हिमाचल प्रदेश
—————————————
स्वतंत्रता
—————-
स्वतंत्र तुम्हारे ख्यालों से,
मुझको कोई भी द्वेष नहीं।
किंतु मेरी इच्छाओं का यूँ,
अनादर भी तो ठीक नहीं।
अपनी आज़ादी की खातिर,
तुमने क्या क्या जतन किए।
मुझे बताओ चंदेल साहिब,
कितने पंछी आज़ाद किए।
वो बूढ़ा आम बरगद का पेड़,
मुझसे अक़सर करते सवाल।
कहाँ गए वो धरा के लाल,
रखते थे बच्चों जैसे ख़्याल।
चिड़िया कोयल कौवा कबूतर,
स्वतंत्र होकर जाने कहाँ गए।
मानवीय स्वंतन्त्रता की चाह में,
सब का जीवन बलिदान किए।
क्यों सूख गया वो पनघट,
बावड़ी कुँए सब हुए ख़त्म।
आधुनिकता के इस दौर ने,
ख़त्म किया सादा सरल जीवन।