कवि हलधर का प्यारा सा गीत…मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता
जसवीर सिंह हलधर
कवि/शाइर
देहरादून, उत्तराखंड
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गीत -रूप जगत का न्यारा होता
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तुम चाहे मानो मत मानो, पर मेरा विश्वास अटल है।
मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता।।
जाति-पाति के बंध न होते, आपस में संबंधी होते।
बंधन संसाधन बन जाते, विपदा में अनुबंधी होते।।
मज़हब के सौदागर नेता, भीख मांगते चौराहों पर,
यक्ष प्रश्न यह ऋषि मुनियों ने, संयम पूर्ण विचारा होता।।
मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता।।1
सरहद मुक्त विश्व होता तब, भौगोलिक सीमांकन होता।
जलवायु परिवर्तन खातिर, सकल विश्व में मंथन होता।।
भांति परिंदों के मानव भी, दुनियाँ भर में विचरण करता,
द्वेष क्लेश सभी मिट जाते, मानव धर्म हमारा होता।।
मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता।।2
प्राकृतिक विपदा की खातिर, सेना काम काज सब करती।
परमाणु से बिजली बनती, उजियारी हो जाती धरती।।
अस्त्र-शस्त्र की होड़ न होती, कितने संसाधन बच जाते,
भूख गरीबी से लड़ने में, ये धन एक सहारा होता।।
मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता।।3
सागर में भी कोलाहल है, रोज मिसाइल बम चलने से।
अब भी समय सँभल जा “हलधर”, दुनियाँ बच जाये जलने से।।
मज़हब औ विस्तारवाद के, नाग नाथ को कुचला होता,
भाई चारे की दुनियाँ का, रंग निराला प्यारा होता।।
मज़हब अगर नहीं होते तो, रूप जगत का न्यारा होता।।4
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..26/11/2020
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