कवि जसवीर सिंह हलधर की शानदार ग़ज़ल.. कौम से मौका परस्ती ठीक है क्या सोच ले..
जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून, उत्तराखंड
———————————————-
ग़ज़ल ( हिंदी)
———————————-
कौम से मौका परस्ती ठीक है क्या सोच ले।
राजनैतिक मौज मस्ती ठीक है क्या सोच ले।
राजधानी की बहुत घायल हुई है आत्मा,
क्रोध में सारी है बस्ती ठीक है क्या सोच ले।
जो किया तूने बता कितना बड़ा अपराध है,
पुलिस से भी जबरदस्ती ठीक है क्या सोच ले।
ताल से दरिया बना दो आँसुओं की बूंद से,
जिद करे मत और सस्ती ठीक है क्या सोच ले।
कौम कुनवा साथ आये देख कर रोना तेरा,
छोड़ दे अब राह गस्ती ठीक है क्या सोच ले।
अब किसानों की चिता की आड़ लेना छोड़ दे,
जल न जाये घर गिरस्ती ठीक है क्या सोच ले।
अब तिरंगा मांगता प्रतिशोध उस अपमान का,
आग की लपटों में हस्ती ठीक है क्या सोच ले।
काफिला”हलधर” बढ़ा तो भूल मत इतिहास को,
बोल मत जस्ते को जस्ती ठीक है क्या सोच ले।