कवि जसवीर सिंह हलधर की एक ग़ज़ल… जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फसाद
जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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ग़ज़ल ( हिंदी )
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जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फसाद।
मौत बस सच्ची सहेली ना- मुरादों की मुराद।
दाल रोटी के यहां लाले पड़े है गांव में,
हुक्म है सरकार का यह भोज में खाओ सलाद।
काफिरों से बैर जिसका कौन सा भगवान वो,
एक दिन दुनियाँ जला देगा उसी का यह जिहाद।
यह जमीं जन्नत सरीखी और मत गंदा करो,
युद्ध के अभ्यास से होने लगा सागर विषाद।
जाति रूपी ज़ख्म अब नासूर बनते जा रहे,
देश की आबोहवा में घुल रही इनकी मवाद।
धर्म के कुछ कारखाने गढ़ रहे शैतान अब,
राजनैतिक कुछ मशीनें कर रहीं इनको खराद।
प्रश्न गंगा कर रही है मौन भगीरथ खड़े,
स्वच्छता के नाम पर क्यों ऋषि पुत्रों में विवाद।
पीर पैगंबर यहां देते रहे संदेश यह,
अंश सब भगवान के शादाब ‘हलधर’ या निषाद।
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सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशित…..06/03/2021
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