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हरियाणा से कवि ललित अस्थाना की बिटिया पर स्नेहिल रचना… बिटिया जब डांट लगती है..

ललित अस्थाना
फरीदाबाद, हरियाणा
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(सौभाग्य से जुड़वाँ बेटियों का पिता होने के नाते, उनके प्रति अपने एहसास को पंक्तिबध् करने की एक कोशिश)

बिटिया जब डाँट लगाती है,
वो दिल को छू जाती है।
बिटिया जब दुलराती है,
मन को बहुत लुभाती है।

बिटिया जब हंसती है,
रोम रोम पुलकित हो जाता है।
बिटिया के रोते ही,
तन मन सब थर्राता है।
मात-पिता की खुशहाली बिटिया,
उनके जीवन की हरियाली बिटिया

बिटिया धन है, बिटिया जेवर,
माहौल बनाते बिटिया के तेवर।
बिटिया जीवन की श्रद्धा,
ईश्वर की वह है अनुकम्पा।
बिन बिटिया जीवन सूना,
चहल-पहल लगाती वह बन हड़कम्पा।

बिटिया में मां है,
बिटिया में है बहना।
पत्नी बन बिटिया,
बनती घर का गहना।
फिर क्यों , बिटिया ठुकराई जाती है,
रौंदी और सताई जाती है?
हद तो तब है, बिटिया जब,
निर्ममता से पीटी और जलाई जाती है।
गर बिटिया न होती,
तो सोचो, क्या होता?
न हम होते, न तुम होते,
और न ही ये जग होता।

इन्दिरा, बेदी हो या हो सुकुई,
हो मार्गरेट थैचर, या फिर नुई।
बिटिया जब जब आगे आई है,
खुशहाली और तरक्की लाई है।
रानी लक्ष्मी, मदर टेरेसा,
बन सकती हैं, बिटिया ही एैसा।
बिटिया से ही जग संरचित,
बिटिया से सब संरक्षित,
इसीलिये उसे मत ठुकराओ,
न ही पीटो और सताओ।
बिटिया के घर आने पर,
पुलकित मन से खुशी मनाओ।
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