शहीद की सुहागन … आभा चौहान, अहमदाबाद
शहीद की सुहागन
आभा चौहान, अहमदाबाद
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बाहर बादल है गरजते मोर रहे हैं नाच,
पर क्यों मेरा मन न जाने बेचैन है आज।
आज मुझको तुम्हारी बहुत याद आ रही है,
तुम्हारी अनसुनी आवाज ही मुझको बुला रही है।।
वो दिन याद आ रहे हैं ,
जब मैं इस घर में दुल्हन बनकर थी आई।
आंखों में मेरे सपने थे,
बाहों में खुशियां थी समाई।
उस दिन सोलह सिंगारो से मै सजी थी,
हाथों पर मेरे सुंदर मेहंदी लगी थी।
अभी तो तुमने मुझको पहला तोहफा दिया था,
थोड़ा-थोड़ा मैंने तुमको पहचानना शुरू किया था।।
अचानक सीमा से आया बुलावा,
दुश्मनों ने कर दिया था हमला।
मन था पर तुम को पडा जाना,
न चल सका कोई बहाना।
उस दिन से शुरू हुआ मेरा इंतजार,
दिन बढ़ते गए बढ़ता गया प्यार।।
तुम ना आए पर काली रात आई,
तुम्हारे चले जाने की खबर मैंने पाई।
आज फिर जीत गया देश के लिए प्यार,
इस तरह खत्म हुआ मेरा इंतजार।।
मैं तुमसे करती हूं वादा,
फौज में मैं जाऊंगी।
तुम्हारे बचे हुए सारे कर्तव्य,
अब मैं निभाऊंगी।।
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आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…. जय हिन्द जय भारत
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..15/08/2020
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