शिक्षक दिवस पर विशेष: तारा पाठक की कुमाऊनी कहानी … गरीब मासैप
तारा पाठक
एक नाम बामण ज्यू जनमा बखतौ घड़ि-पल, राशि-नक्षत्र देखिबेर धरनी।वी हिसापैल कुनइ बणैं। यै अलावा नाम धरणी चार बामण यास लै छी, आइ जनरि पढ़ाइ पुरि नि हैरैछी।
उसी त उं इस्कूली ना्न छी, सात आठ में पढ़नी चकान। उमर ज्यादे न्हैंती, फिर लै ग्रह-नक्षत्र देखणैं जरवत उनन नि पड़छी। मैंसौ मुखड़ देखि, वी चाल-ढाल देखि, या पैराव देखिबेर यस नाम धरछी कि नामा फ्रेम भितेर उ जण फिट बैठछी।
घर-बणैं इनर एक्कै काम भय-नाम धरण। पैंली-पैंली भौत दिक्कत आईं।नामकरणैं दक्षिणा बदाव नड़क-झड़क मिलनेर भै, कभैं क्वे ठुलि दक्षिण (चैंट लै मारि) दिनेर भय
इनरि चकान चौकड़ी जां जांछी दगड़ै जांछी। पढ़ाई में इनर मन भौत कम लागनेर भय। मासैप पढ़ूंछी,यों कक्षा में सबसे पछिल भैटिबेर खिचरोई में लागि रूनेर भाय।
दिन पर दिन इनरि आदत नि सुधरि, बल्किन और जै क्याप्प-क्याप्प कुड़बुद इनार डिमाक में ऊण भैटीं।
कक्षा में एक च्यल पूरन छी, कालो रंग और गलाड़ लाल। वी नाम ‘लाल पु’ धरी भय। यो नाम एतू भलि घड़ि में पड़ौ कि पक्क नाम लाल पु हैगोछी।
एक च्यला ख्वारा बाल हर बखत ठा्ड़ लागि रूनेर भाय, वी नाम ‘शौल’,अत्ती लंब च्यलौ नाम ‘लठ्यूड़’,एकौ नाम ‘कट्यड़’, एक पतलि चेली नाम घिरौइ, एकौ नाम दाणि जास कतू नाम भाय।
इस्कूला मासैप जै कां बचछी इनरि नजरों बै? अंग्रेजी पढ़ूनी मासैपों नाम सुखेन्द्र लाल छी, उनन धैं सुकी बुढ़, सदानंद मासैपों नाम सदागंज, कषि और सामाजिक विज्ञान पढ़ूनी मासैप म्वाट-घा्ट छ्या, उनर बणहाति नौं पड़ौ। एक मासैपों रंग लक्स सापण जस गुलाबि छी, उनर नाम रा्त धरी भय।
जुलाई म्हैंण इस्कूल में नई मासैप आईं। उनूंल गेरू रंगौं कुर्त-पैजाम पैरी छी।
यों छै बै आठ जालै गणित पढ़ूछी।चाल-ढाल, रंग-रूप,पढ़ूनौं तरिक भौत भल भय। कैकैं मारण या डांठण नि करनेर भाय।
कक्षा में ना्न नई मासैपों भौत इज्जत करछी। गणित जस कठिन बिषय में लै सबों मन पढ़ाइ पर खूब लागनेर भय, लेकिन सबों है पछिल भैटी उं चारों मन पढ़ाइ में कसी लागछी? उनर मन नई मासैपों नाम में अल्जीण भय। अघिल बै भैटी ना्नों गणिता सवाल हल है जानेर भाय,इनार जोड-तोड़ लगैबेर बणाई नाम फिर-फिर कट्टम-कुट्टा। जो नाम एक कैं ठिक लागलो दुसर उकैं खारिज करि दिनेर भय।चार डिमाक लागी भाय, नाम धरण लैक एक नि मिलणौंछी।
एक दिन मासैप जसै कक्षा बै भैर गईं,दुल्प्यैल जोरैल डैस्क में मुक्क मारौ-
“मिलि गो, नई मासैपों नाम मिलि गो।”
आपण कौपि-किताब झ्वालन समावणी सबै ना्नों मुख बै दगड़ै छुटौ-
“जल्दी बता के छ?”
चाहे और ना्नों मन पढ़न में लागनेर भय, लेकिन सबोंकैं नई मासैपों नामक् बड़ इंतजार छी।सबों कैं अचर्ज भौ-आखिर मासैपों में यस के छ जो दुल्प्या पकड़ में ऐगो?
दुल्प्या आँखों चमक देखण लैक छी।वील अणकसै मूख बणैबेर कौ-
“जो नाम हमार सामणि रोज ऊं, हमूंल किलै नि देख आज जालै?”
उमेदियैल ठाड़ हैबेर कौ-“आब तू बात घूमूण शुरू नि कर, जल्दी बता।रा्त मासैपों पीरियड छ, कभतै लै ऐ सकनी।”
“तुमूंल कैलै ध्यान दे कभणी,एक जोगैन रंगों कुर्त-पैजाम रोजै पैरनी।इनर नाम गरीब दास मासैप है गोइ।”
“अर्रे -याऽर हमार डिमाक में आज जालै किलै नि ऐ? “मधनियैल दुल्प्यौ पुठ थपका।
भौंनियैल कौ-
“यों जोगैन कप्ड़ पैरनी ,इनर नाम जोगि लै है सकं।”
“गजब हैगो यार! आज जालै एक नाम नि मिलणौंछी, आब द्वि दगड़ै मिलि गीं।”
हरियैल भौंनियै मजाक उड़ून हुं कौ-
“अरे! पचों बामणौं धरी नाम लै ठिक लागणौं।”
उदिन बै जैकैं ‘गरीब दास’ भल लागो वील गरीब मासैप कय, जैकैं जोगि भल लागो वील ‘जोगि मासैप’ कय।
हाप टैम जालै सबै कक्षा नानोंकैं नई मासैपों नाम पत्त चलि गोछी। ना्नोंल दुल्पी घेरी भय। जै मन जे ऊणैंछी,ते कूणाय।
यों ना्नोंकि ना्नि बुद्धी हिसापैल गरीब मासैपों पास आपूं हुं पैंट-कमीज बणून हुं डबल नि हुन्याल।तबै कुर्त-पैजाम पैरनी।
मुणि-मुणि कै ना्नों मन कौंई गोछी।कभतै अत्ती दया मारी क्वे ना्ना मुख बै, शिबौ गरीब मासैप छुटि जानेर भै।चारै चकान लै गरीब मासैपों पीरियड में मन लगैबेर पढ़न भैगोछी।
सबै मासैप बढ़िया पैंट-कमीज पैरिबेर इस्कूल ऊंछी। यां तक कि इस्कूलौ चपरासि लै पैंट-कमीज पैरछी।
उं अफामों तितिर जस डिमाक में एतू ना्नि बात किलै नि ऐ हुनेलि कि सब मासैप जब पैंट-कमीज बणै सकनी, त गरीब मासैपों कैं लै उनरी जसि तनखा मिलैं। उं किलै नि बणै सकन?
नई नाम धरण उरातार चलियै भय।पत्त ना उनार डिमाक में यास अजब-गजब नाम कसी ऊंछी।
गरीब मासैपों कैं आई म्हैंणेक हैरौ हुन्योल, एक दिन उनार पछिल बै एक ना्न इस्कूलौ बस्त कानन टांगिबेर ऊण देखौ, इस्कूली नानों लिजी कौतिक हैगोय।मासैपों भै छ कै, सब उकैं आपण दगै भैटूण चाणाय। उ दिन हाप टैम में के खेल नि खेल,जसी मौनों पूड़ में एक राणि हैं, उसिकै ना्नों बीच मासैपों भै लै लागणय।
मासैपों भै नाम राजन छी, उ पढ़न में भौत होश्यार भय।खालि पीरियड में लै केनके काम करते रूनेर भय।उ फालतू बकबास नि करछी। आपण काम दगै काम बस।
रा्त मासैप ऐगीं यार।सुकी बुढ़ नि देखीणैं या आज बण-हाति मासैप भौत गुस्स में छन। ना्नों कैं अलग-अलग मासैपों उपनाम ल्हिणै सार भै। गरीब मासैपों भै एत्ती छ,कभतै याद रूनेर भय,कभतै मुख बै ‘गरीब मासैप’ या ‘जोगि मासैप’ राजना सामणि लै छुटि जानेर भय।
एक दिन-द्वि दिनैं बात हो, जिबड़ि जा्ग पर रवौ। राजन रोजै इस्कूल ऊनेर भय। कुबाणि पड़ी खाप कां समवछी?
आखिर में उ घड़ि लै ऐ, जब ना्नों लिजी गरीब मासैप-जोगि मासैप कूण दाल-भात हैगोय।
एक दिन गरीब मासैप नई पैंट-कमीज पैरिबेर अचाणचक कक्षा में आईं।बदई भेष में मासैपों कैं देखिबेर ना्नों हातौ-हातै, पातौ-पातै रैगोय। ना्न आँख ताणिबेर बस मासैपों कैं चाई भाय।
मासैप ना्नों हालत देखिबेर मुलमुलू हंसणाय, फिर उनूंल कौ-
“एसी के चैरौछा, इन लुकुड़ों में भल नि लागण्यूं के?”
मार खाणैं डरैल ना्नोंल मुनइ टोर करि ल्हे। शैद मासैपो कैं आपण नाम पत्त चलि गो। नाम धरणी बामणा बा्र में जरूर पुछाल, लेकिन मासैपोंल बिना नड़क-झड़कै पढ़ून शुरू करि दे।
मासैपों जाई बाद लै ना्नों मुख बै ‘चूं’ नि निकलि। कक्षा में राजन लै छी,यै वील उनूंल के जिगर नि कर।
अघिल दिन त ना्नों कैं झस्स स्यूण-पाणि जस लागौ।मासैप फिर से जोगैन कुर्त-पैजाम पैरिबेर कक्षा में उनार मुखतिर ठाड़ हैरौछी। मासैपोंल के नि कय, लेकिन उनरि सादगी प्रतीक कुर्त-पैजाम ना्नों कैं यो सीख दिणौछी कि&
“जो पैंट-कमीज पैरनी ,उं ठुल मैंस हुनी के? कुर्त-पैजाम कप्ड़ नि हुनऽ?
भल मैंसै पछ्याण वी लुकुड़ों बै नैं, बल्किन वी ज्ञान, मधुर बाणि और भल ब्यौहार ल्हिबेर हैं।
आब मासैपोंल रोजा चारी पढ़ून शुरू करि हैछी। पत्त ना नानों ध्यान पढ़ाइ में छी या——–?
यो बाता लिजी मासैप ना्नों कैं मारना, ना्न कुबा्ट बै कभैं सुबा्ट नि ऊन।मासैपोंल उनार मना अपगुण मारि बेर उनन भल बा्ट में लगा।
उ दिन बै चारै चकान भौत गैल-गंभीर बणि गोछी।उनूंल पंडिताई (नाम धरण) कैं दूरै बै नमस्कार कौ और शर्मान-शर्मानै मासैपों धैं माफि मांगी।
“सतगुरु की महिमा अनंत,
अनंत किया उपगार।
लोचन अनंत उघाड़िया,
अनंत दिखावण हार।”
पैल शिक्षक सहित अनंत रूप गुरुजनों कैं प्रणाम 🙏
शिक्षक दिवस पर सादर समर्पित।