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संविधान दिवस पर विशेष…. मैं हूँ भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना…

जसवीर सिंह हलधर
कवि/शाइर
देहरादून, उत्तराखंड
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गीत – संविधान दिवस पर
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मैं हूँ भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना
अपने जख्मों पर रोता हूँ, मेरे दुख का यह पैमाना।।

कोई दल आया हिला गया, कोई दल आया झुला गया।
आतंकी कुत्तों का टोला, अंतस तक शोणित पिला गया।
सारे दल मेरे शोषक हैं, सब मुझ पर दांव लगाए है,
भूखे बच्चों के कृन्दन को, मैं देख देख तिलमिला गया ।
अधिकारों के सब सौदागर, कर्तव्यों का अहसास नहीं,
सत्तर सालों तक झेला है, घोटालों का ताना बाना।।
मैं हूँ भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना।।1

संसोधन होते बार-बार, जिनकी सीमा का अंत नहीं।
हर मौसम ही वीराना है, मेरे घर खिला वसंत नहीं।
सौ से भी अधिक घाव देखो, मेरी इस जर्जर काया में,
लगता है अब तो न्यायालय, संसद भी मेरे कंत नहीं।
मुझ पर ही धूल उड़ाते हैं, कुछ जाति धर्म के गठबंधन,
रोजाना घेर रहा मुझको, तूफान मजहबी दीवाना।।
मैं भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना।।2

मुझको धर्म हीन बतलाकर, तुमने ही निरपेक्ष बनाया।
बिना आत्मा के क्या कोई, जीवित रह सकती है काया।
मेरी नींव खोदने वाले, सारे दल सत्ता सुख वाले,
भूल गए बाबा की करनी, जिसने कुछ सम्मान दिलाया।
सब सोच समझ मतदान करो, सच्चे नेता का मान करो,
भारत फिर से होगा महान, मेरा बस ये ही परवाना।।
मैं हूँ भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना।।3

मेरी चाहत है इतनी हम, दुनियां में अपना नाम करें।
झगड़ें ना एक दूसरे से, सब अपना अपना काम करें।
मेरा तन बेसक घायल है, पर मन सरहद पर रहता है,
आरोप मढो मत सेना पर, मत बिना बात बदनाम करो।
इक लाल दुशाले में “हलधर”, सीमा पर डायन घूम रही,
बासठ जैसी गलती ना हो, दोबारा ना हो पछताना।।
मैं हूँ भारत का संविधान, दुनियां में जाना पहचाना ।।4
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..26/11/2020
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