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मैं पुष्प बनना चाहता हूं, मैं प्रकृति के रंगों में रंगना चाहता हूं..

अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’ अनभिज्ञ
ऋषिकेश, उत्तराखंड
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मैं पुष्प बनना चाहता हूं
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मैं पुष्प बनना चाहता हूं,
मैं प्रकृति के रंगों में रंगना चाहता हूं,,
सौन्दर्य का प्रतीक बनकर मैं
अपनी सुन्दरता बिखेरना चाहता हूं,
काँटों के बीच रहकर भी
मैं खिलना चाहता हूं,
जी हाँ, मैं पुष्प बनना चाहता हूं।

प्रेमी युगल की पहली मुलाकात का
मैं हिस्सा बनना चाहता हूं,
सुहागन के केशों में लिपटा हुआ गजरा बनकर,
मैं उसकी सुन्दरता बढ़ाना चाहता हूं
मांगलिक सुअवसरों पर मैं
अपनी उपस्थिति देना चाहता हूं।
जी हाँ, मैं पुष्प बनना चाहता हूं।

मूर्तियों को मस्तक से चरणों तक
मैं अलंकृत करना चाहता हूं
हर मन्दिर हर दरगाह में
मैं समर्पित होना चाहता हूं
हर मजहब में, मैं आस्था का
प्रतीक बनना चाहता हूं
नफरत की भावना को
प्रेम में बदलना चाहता हूं।
जी हां, मैं पुष्प बनना चाहता हूं।

शिशु के जन्म पर
मैं बरसना चाहता हूं
वर-वधु के मिलाप का
साक्षी बनना चाहता हूं
अपने आशियाने में भँवरों का
मधुर संगीत सुनना चाहता हूं
कुचले जाने से पहले मैं किसी को
सम्मानित करना चाहता हूं
जी हाँ, मैं पुष्प बनना चाहता हूं।

भाष्कर की किरणों के साथ
दिन की शुरुआत करना चाहता हूं
मैं खिलना चाहता हूं
मैं महकना चाहता हूं
जानता हूँ पुष्प बनकर
कुछ दिनों का जीवन होगा मेरा,
लेकिन इन कुछ दिनों में ही
मैं सबकी पसंद बनना चाहता हूं
जी हाँ, मैं पुष्प बनना चाहता हूं।
©®
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..20/11/2020
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