मेरा सर्वस्व अपना कर, अब तो पति परमेश्वर बन जाओ तुम
मनी चतुर्वेदी शर्मा, दिल्ली
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पवित्र रिश्ता
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चाहो मेरे जिस्म को पर, मेरी रूह को भी तो अपना बनाओ तुम
मेकअप लगे इस चेहरे को छोड़, मेरे अंदर की खूबसूरती को अपनाओ तुम
ये बनावट उम्र भर साथ नहीं देती, यह याद रखना तुम
गोरी चमड़ी के लिए तो, मेरा दिल ना दुखाओ तुम
साथ देने का जो वादा किया था, सात फेरे लेते समय
फैशन और समय की भेड़चाल में, उसे ना भुलाओ तुम
मेरा क्या है मैं तो, छलनी हुए दिल के साथ जी लूंगी
पर जब समझोगे क्या खोया तुमने, तो संभल ना पाओगे तुम
अस्त-वस्त, हंसती रोती, जैसी भी हूं अर्धांगिनी हूं मैं
मेरा सर्वस्व अपना कर, अब तो पति परमेश्वर बन जाओ तुम
शरीर की बनावट को तो हर नजर ने, अपने हिसाब से देखा
कम से कम, मेरे जज्बातों से मुझे पहचानने वाले कहलाओ तुम
सोलह श्रृंगार करती मैं और, मन ही मन मुस्कुराती रहती
मुझे देखकर मेरी सुंदरता में, चार चांद तो लगाओ तुम
जन्म जन्मांतर का यह अटूट बंधन, चिर निद्रा तक चले
सदा सुहागन के मेरे आशीष के पूरक, सदा यूं ही मुस्कुराओ तुम
ये जो रिश्ता है हम दोनों का, इसे बस महसूस करो
किसी एक खास दिन का इसे, मोहताज़ ना बनाओ तुम
चाहो मेरे जिस्म को पर, मेरी रूह को भी तो अपना बनाओ तुम
मेकअप लगे इस चेहरे को छोड़, मेरे अंदर की खूबसूरती को चाहो तुम।।