वरिष्ठ कवि मोहन चंद्र जोशी “मोहंदा” की कविता… थे न थकाउ अखबार हॉकर.. विक्रेता के बेतन भोगी वर्कर…
मोहन चंद्र जोशी “मोहंदा”
हल्द्वानी, उत्तराखंड
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अखबार ऐसी चीज ओढ लो या बिछालो, मनोरंजन ही मनोरंजन औ ज्ञान रंजन
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थे न थकाउ अखबार हॉकर
विक्रेता के बेतन भोगी वर्कर,
बिन नागा अखबार डालते
पर्व पर नागे बहुत सालते,
रौनक में रहते सारे पाठक
स्तंभ व रचनाकार थे पायक,
तड़के आ जाता अखबार
पड़के जाता था अखबार,
कोशिश बहस बिन हो दफ्तर
अनुशासन आसन जमकर,
मोटी कादम्बनी घर पर आती
सरिता स्लिम भी संग मेंआती,
धर्मयुग में ढब्बू जी खूब हंसाते
सा.हिंदुस्तान साहित्य बहाते,
बदली आज मोहन अवस्थाऐं
पत्रिका समूह की विवशताऐं,
इधर भी अवस्था का डेरा
चमक धमक ने मुंह है फेरा,
हे खेवैय्या लान या दालान दे
तामें में बिछी चंद-मंद कुर्सियां
प्याली चाय की हों चुस्कियां
घुल रही जिसमें रवि रश्मियां
ले मजा अखबार पी सुर्खियां
थे न थकाऊ तब अखबार
हॉकर लेट निकलता आज
थका अखबार वर्कर।।