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कोरोना काल ने महिलाओं की संवेदनाओं को झकझोरा है: सविता चड्ढा

शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rath news)। नई पीढ़ी फाऊंडेशन की दिल्ली शाखा की महिला इकाई के तत्वावधान में (रविवार) को अखिल भारतीय वेबिनार का आयोजन किया गया। डॉ दर्शनी प्रिय (प्रदेश अध्यक्ष,दिल्ली सम्भाग) की अध्यक्षता में कार्यक्रम का सफ़ल आयोजन हुआ। “कोरोना काल में महिलायें” विषयक इस कार्यक्रम में कला, साहित्य और लेखन से जुड़ी विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं ने सहभागिता की। वेबिनार में डॉ मीता प्रियदर्शिनी, ममता सिंह, सविता चड्ढा, ममता बनर्जी मंजरी, परिणिता और अंशु अन्वि सारडा आदि ने अपनी बात रखी। उन्होंने गहन मंथन के साथ सार्थक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश की।

कार्यक्रम की शुरूआत अध्यक्षीय भाषण और वक्ताओं के परिचय से हुई। सामाजिक विज्ञान में गहरा अनुभव रखने वाली मीता ने एक ओर जहां महिलाओं की गिरती माली हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के रिपोर्टो का हवाला दिया। वहीं, छोटे और लघु उद्यमों से जुड़ी महिला संबंधी योजना की भी बात कही। अंशु अन्वि ने बड़ी गंभीरता से ये बात उठाई कि संगठित व असंगठित क्षेत्र में महामारी के दौरान महिलाओं का तनाव बढ़ा है। फिर भी महिलाओं ने आपदा को अवसर में बदला है। साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया कि समाज में साहित्य सृजन बढ़ा है।

ममता सिंह ने ये माना कि कोरोना काल ने महिलाओं को आर्थिक और मानसिक तौर पर निचले पायदान पर धकेला है। छोटे-छोटे कामों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। झारखण्ड से शिरकत कर रही ममता बनर्जी का कहना था कि कोरोना काल में महिलाओं का डिजिटलीकरण हुआ है। अब वो पहले से ज्यादा नेट सेवी हुई हैं। साथ ही उनपर काम का दोहरा भार भी बढ़ा है। वरिष्ठ साहित्यकार सविता चड्ढा ने बताया कि प्रत्येक कालखण्ड में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कोरोना काल ने हमारी संवेदनाओं को झकझोरा है।अंजान चेहरो के बीच डिजिटल सम्पर्क बढ़ा है। निश्चित ही महिलायें वैचारिक रूप से ज्यादा प्रभावित नहीं हुई है। अतिथि वक्ता परिणिता ने कहा कि कोरोना काल ने महिलाओं की पारिवारिक स्थिति में भारी बदलाव किया है।

अंत में प्रदेश अध्यक्ष डॉ दर्शनी प्रिय ने अपने समापन भाषण में बताया कि विकास की तमाम परिभाषाएं आर्थिक तरक्की के इर्द-गिर्द ही बुनी जाती है और कोरोना काल में महिलाओं को आर्थिक क्षति सबसे ज्यादा हुई है। आधी आबादी आर्थिक हासिये पर आ खड़ी हुई है। इतिहास अब ईसा पूर्व या ईसा बाद का काल नहीं माना जायेगा अपितु कोरोना काल से पूर्व या कोरोतीत कहा जायेगा। इस काल में महिलाओं में अवसाद का स्तर किसी भी काल से सबसे ज्यादा बढ़ा है। वे पहले से कहीं अधिक घरेलू हिंसा की शिकार हुई। कोरोना काल प्रताड़ना काल के तौर पर इतिहास में हमेशा याद किया जायेगा।

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