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व्यंग्यकार ननु नरेन्द्र की एक लघु कथा… बच्चा नहीं मिला

व्यंग्यकार ननु नरेन्द्र
देहरादून, उत्तराखंड
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बच्चे की फोटो
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गुब्बारा बेचते एक बच्चे की फोटो आज के दैनिक में क्या छपी, कि शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया। शिक्षा सचिव ने आनन-फानन में मीटिंग बुलाई। घबराहट के मारे बुरा हाल। तीन बार तो शिक्षा मंत्री का ही फोन आ चुका। एक बच्चा गुब्बारा बेच रहा और उसका फोटो अखबार में छप गया, साथ लिखा था- ‘चौराहों पर दम तोड़ता बचपन’।

इस बच्चे को ढूंढो और स्कूल में भर्ती कराओ। जैसे भी हो, हद से हद चौबीस घंटे का समय देता हूं। यही संदेश आगे आगे तक सरक़ गया। तीन जीप निकली, पंद्रह आदमी। पूरा शहर छान मारा। बच्चा नहीं मिला।

एक जगह तीन-चार बच्चे, पन्नी चुगते मिले। उन्हें गुब्बारे वाला फोटो दिखा कर, अधिकारी ने पूछा- इस बच्चे को देखा है? वे बोले – नहीं। आगे बढ़े तो, दो बच्चे साइकिल पर कबाड़ा लेकर जा रहे थे। उनसे पूछा – इस बच्चे को देखा? वे बोले – नहीं। अधिकारी आगे बढ़ गए। दो बच्चे ग्राउंड के किनारे बैठे व्हाइटनर सूंघ रहे थे। वे डर के मारे भागने लगे। अधिकारी ने पकड़ लिया। उन्हें फोटो दिखा कर पूछा – इस गुब्बारे वाले बच्चे को कहीं देखा है ? वे बोले – नहीं।

शाम ढले तीनों जीप मुख्यालय वापस आ गई। हताश और परेशान। गुब्बारा बेचने वाला बच्चा, जिसकी फोटो के साथ लिखा था, ‘चौराहे पर दम तोड़ता बचपन’ वह नहीं मिला।

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