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नारी तू बेजान नहीं… तेरे भीतर भी एक मन है…

डॉ अलका अरोड़ा
कवियत्री/लेखिका/थिएटर आर्टिस्ट
प्रोफेसर- बीएफआईटी, देहरादून
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शक्ति का अवतार नारी
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नारी तू बेजान नहीं
तेरे भीतर भी एक मन है

आंखें तेरी खामोश सांवली
शुभ्र श्वेत सा उजला तेरा तन है

हर घर की शोभा है तुझसे
स्वाभिमान की जननी तू

फिर भी तेरा आंचल खाली
विशब्द्ध बाण से छलनी तू

जिसने तुझको जैसा देखा
वैसी उसने सोच बना ली

मां बहन बेटी से हटकर
प्रियतमा की छवि बना ली

लाज शर्म ताक पर रखकर
बाजारों की शोभा बना दी

एक सम्मानित नारी का
देखो कैसा रूप बनाया

झांसी, इंदिरा, कस्तूरबा, कमला
जिसमें सब की सूरत दिखती थी

सुंदर सी नारी में देखो
रंभा, उर्वशी, मेनका दिखला दी

पुरुष प्रधान समाज ने देखो
नारी रूप बदल डाला

सुरमई नैनों को कैसे
अश्रुपूरित कर डाला

एक घड़ी रुककर तुम सोचो
क्या तुम ऐसी जन्मी थी

श्रद्धा कि तुम पावन मूरत
दुर्गा, काली सी मनभावन

सरस्वती सी विदुषी हो तुम
लक्ष्मी बन अमृत बरसाती थी

अब तुम थोड़ा बदल गई हो
चलते-चलते दौड़ रही हो

तुमने खुद को पहचाना है
स्वाबलंबी बन खड़ी हुई हो

घूंघट के दायरों से
दफ्तर की दहलीज पर

हौले हौले चलते हुए तुम
राष्ट्र की प्रहरी बनी हो

पति, पिता, मित्र और पुत्र ने
हिम्मत तेरी बढ़ाई है

कंधे से कंधा मिलाकर
नई राहें तुम्हें दिखाईं हैं

आज समाज भी बदल रहा है
शमा जागृति की जला रहा है

नारी तुम केवल श्रद्धा हो
शाश्वत सत्य यह बता रहा है

घर और बाहर दो जहां पर
आज तेरा अधिपत्य हुआ

नए जीवन के आगाज़ से देखो
मन मयूर फिर नाच उठा

सच कहती है सृष्टि सारी
नारी तू बेजान नहीं

प्रेम, प्रीत से ओतप्रोत तू
तेरे भीतर भी एक मन है।

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