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नीलम पांडेय नील की बहुत ही सुन्दर रचना… हंसी से संक्रमित कर दें लोगों को

नीलम पांडेय नील
देहरादून, उत्तराखंड
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हंसो
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अगर निपट अश्रुओं के बीच
हँस सको तो…..
हँसो, हँसो।
हँसो, नहीं तो मर जाओगे।
हँसो, नहीं तो खो जाओगे।
हँसो, बेवजह ही हंसो।
हँसो, हँसी जरूरी है।

मत करो ये सवाल मुझसे
कि ओ! निर्लज्ज,
दु:ख की घड़ी में हँसी कैसी?
मत कहो कि
ये हँसने का समय नहीं है।
याद रखो,
ये बचाने का समय भी है।
जब हाथ में कुछ नहीं बचा
तो मुठ्ठी भर-भर हँसी फेंक दो…

जहां हो, जैसे हो,
हंसो, ताकि बचा रहे समय।
जिनके पास तिनके भर भी हंसी बची है
वो हंसी से
संक्रमित कर दें लोगों को।

माना
बहुत कठिन होगी।
हँसने की ये जद्दोजेहद
लेकिन फिर भी
जितनी जोर से हंस सकते हो
हंसो…..
अब जरूरी है
समय, आदमी और सांस को बचाना।

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