चलो चले गांव की ओर… छठी किश्त… पलायन का दंश झेल रहे गावों में मरहम का काम कर रहे धार्मिक आयोजन
नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
चलो चले गांव की ओर….. गतांक से आगे… छठी किश्त
आज कथा सुनने के लिए मंदिर प्रांगण में बहुत भीड़ जुटी थी। हांलाकि, हमारे गांव के कुछ परिवार जिनके पास ज्यादा छुट्टियां नहीं बची थीं, वापस जा चुके थे। लेकिन, उनकी जगह कुछ नये लोग भी आ पहुंचे थे। फिर इस समय तक आस-पास के सभी गांवों में व्यास जी की प्रसिद्धि भी फैल चुकी थी कि बहुत बढ़िया कथावाचक आए हुए हैं।
इस समय वे शिव शंकर जी के भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने के दृश्य का वर्णन कर रहे थे। माता यशोदा जी से शिव जी अनुनय कर रहे हैं कि मुझे अपने लल्ला के दर्शन कर लेने दे मैय्या। यशोदा जी कह रही हैं तोय देख के मोरो लल्ला डर जावेगो। इस बीच पीछे से हलचल हुयी, देखा तो गांव की कुछ लड़कियां सजी धजी पालने में एक छोटे शिशु को लेकर आ रही हैं। अरे ये तो पल्ले खोले के कुंजी का बच्चा है। सिर पर छोटा सा मुकुट पहने काजल का टीका लगाए चमकीले परिधान में डोलने में बैठा वह बिल्कुल बाल भगवान लग रहा था।
व्यास जी ने प्रसन्न मुद्रा में उद्घोष किया बोलो बाकें बिहारी की … जय.. मंदिर परिसर में सामूहिक स्वर गूंज उठे। फिर व्यास जी सहित समस्त पाठार्थी भजन गाने लगे,
नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की।
नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की।
तभी दूसरे कोने से एक युवा शिव जी के भेष में दाखिल हुआ। यह गांव के लल्ली का बड़ा नाती था। बदन पर मृगछाला लपेटे, गले में प्लास्टिक के नाग डाले, एक हाथ में त्रिशूल थामें व दूसरे से डमरू बजाता जब वह मंच के पास पहुंच कर पालकी में बैठे शिशु को दर्शन करने के लिए आगे गर्दन करता तो लड़कियां डोलने को पीछे छिपाने का अभिनय करतीं। सारा पाण्डाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। बीच में बैठे लोग उत्सुकतापूर्वक देखने के लिए खड़े हो गए तो पीछे वालों ने हल्ला मचा दिया बैठो, बैठ जाओ हमें भी देखने दो। इसके साथ ही भजन गायन शुरु हो गया।
अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं,
राम नारायणं जानकी बल्लभम
तबला, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, खड़कताल के साथ ही इलैक्ट्रिक गिटार की मिश्रित ध्वनियों के साथ तेज होते समवेत स्वरों के गायन ने सम्पूर्ण पाण्डाल को झूमने पर विवश कर दिया। साथ ही लोग पालने में बाल श्री कृष्ण के दर्शन कर मुंह दिखाई के रूप में भेंट चढ़ाते जा रहे थे। देखते ही देखते पालना दस-दस, पचास-पचास के कई सारे नोटों से भर गया। देखा जाय तो गांव में होने वाले इस प्रकार के धार्मिक आयोजन भक्ति, आस्था व आध्यात्म की अलख जगाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। सामाजिक धार्मिक चेतना जागृत हो रही है। पलायन का दंश झेल रहे गावों में ऐसे आयोजन मरहम का काम कर रहे हैं।