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एहसासों का महकता गुलदस्ता ‘पुष्कर विशे’श’.. कवि निकी पुष्कर का उत्कृष्ट काव्य संग्रह

वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
कवि/गीतकार/पत्रकार
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कविता साहित्य की सबसे प्राचीन विधा है। सभी विधाओं में कविता का स्थान महत्वपूर्ण रहा है। ऋग्वेद की ऋचाओं में कविता का आरंभिक रूप प्राण स्वरूप विद्यमान है। कविता तब से है जब लिपि भी नहीं थी यानी जब लिखना भी शुरू नहीं हुआ था तब भी कविता थी। ऋग्वेद की ऋचाओं से लेकर वर्तमान तक कविता ने सहस्त्र वर्षों की यात्रा तय की है। इस यात्रा में प्राचीन तत्व के साथ अनेकों नवीन तत्व कविता से जुड़े। इस नवल जुड़ाव से परिष्कृत होती हुई कविता वर्तमान में सशक्त रूप में विद्यमान है।

वर्तमान युग प्रयोगवादी है। अब कविता सिर्फ श्रृंगार के रूप में नहीं है, मात्र हास-परिहास के रूप में नहीं है, वरन् वर्तमान कविता विषय वस्तु व शैली दोनों में ही बहुत विस्तारित हो चुकी है। वर्तमान कविता सम-सामयिक विषयों पर पैनी नजर रखती है, बदलती हुई परिस्थितियों, समस्याओं और घटनाओं में सम्मलित होकर उस पर बात करती है। सिर्फ बात ही नहीं करती कभी-कभी तो समाधान भी सुझाती है। वर्तमान में कविता इतनी सशक्त है कि वह सिर्फ बात करने तक सीमित नहीं रहती बल्कि प्रश्न भी करती है।


कविता के इसी सशक्त रूप को लेकर पाठकों के बीच आ रहा है काव्य संग्रह ‘पुष्कर विशे’श’। काव्य संग्रह की प्रणेता हैं निकी पुष्कर। निकी पुष्कर का यह पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हो रहा है। लेकिन, संग्रह में उनकी सशक्त रचनाओं से कतई यह आभास नहीं होता कि वह नवोदित हैं और उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हो रही है।
निकी पुष्कर की रचनाएं जितनी सशक्त होती हैं, उतनी ही मधुर कंठ की वह स्वामिनी भी हैं। मैंने उनकी कई ग़ज़लें उनसे सस्वर सुनी हैं। शब्द और स्वर का संगम अद्भुत लगा। हालांकि, काव्य संग्रह ‘पुष्कर विशेष’ में उनकी ग़जलें नहीं है। संग्रह में कविताएं व क्षणिकाएं शामिल हैं।निकी पुष्कर लंबे समय से काव्य सरजन में लीन है। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर काव्यपाठ के साथ ही विभिन्न मंचों पर उनकी उपस्थिति है।

काव्य संग्रह ‘पुष्कर विशे’श’ आद्योपरांत पढ़ने का अवसर मिला। अपार हर्ष व सुखद अनुभूति हुई। काव्य संग्रह अनुभूति व अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टि में उत्तम है। यह कृति भाव, विचार, भाषा व कवियित्री की सशक्त काव्य चेतना का उत्कृष्ट दर्शन है।
काव्य संग्रह का आरंभ निकी पुष्कर की गहन अनुभूति के साथ होता है। कवियित्री की अग्रलिखित पंक्तियों में इसका अवलोकन किया जा सकता है-
कुछ हृदय की अथाह वेदना
कुछ जीवन के कटु अनुभव
कुछ प्रेम की मधुर स्मृति
कुछ पीड़ा एकाकीपन की
कुछ अंतास तम पैठ गया
कुछ पत्रों पर छलक गया।

वहीं, मेरे आंसू शीर्षक कविता में व्यथित हृदय की बात इस तरह उभरकर आती है –
मेरे आंसू
मेरे सच्चे साथी
मेरे सच्चे हमसफ़र

जब कभी व्यथित होता है हृदय
तब यह बहते अविरल
मेरी विवशता पर

युगों से हम सुनते आए हैं कि सत्य से विलग नहीं होना चाहिए। सत्य पर अडिग रहें क्योंकि जीत सत्य की ही होगी। व्यक्ति ने सत्य होगा तो जीवन सुखद होगा। सत्य पर इसी विचार को स्पष्ट करते हुए निकी पुष्कर लिखती हैं-
सच को जितना दबाओ
उसकी जड़ उतनी ही मजबूत हो जाती है
और फिर वह उभरता है
पहले से अधिक शक्तिशाली रूप में।

दूसरी तरफ ‘शेष’ शीर्षक कविता में कविवित्री कहती हैं-

अतृप्त, असंतोष, उत्कंठा
और अनंत तलाश
तलाश किसकी?
ज्ञात नहीं
अनवरत अज्ञात तलाश।

निकी पुष्कर की रचनाओं में विभिन्न विषय समाहित हैं। कुछ विषय बहुत ही संवेदनशील… एकदम व्यक्तिगत, कशमकश लिए हुए। लेकिन, एक सच्चाई..जो ‘रंगत’ शीर्षक के तहत इन पंक्तियों में महसूस की जा सकती है-
सांवले रंग की लड़की
वयस्क होने तक
डूब चुकी होती है
रंगों के गहरेपन में
बचपन की रंगभेदी टिप्पणियों को
सहते झेलते
वह खूब जान चुकी होती है
सारे रंग नहीं बने उसके लिए।

कोरोना महामारी, जिससे वर्तमान में पूरा विश्व प्रभावित है। ‘प्रेमजयी’ शीर्षक के माध्यम से कवियित्री ने उस पर बहुत ही गंभीरता के साथ अपनी बात कही है। अग्रालिखित पंक्तियों में उसका अवलोकन किया जा सकता है-
बुरे दिनों में
झूठ कतई छिपाया नहीं जाता
सारे आवरण तोड़
वह उभर आता है
इस महामारी ने
जिसके अन्दर जो था
उसे उजागर किया
किसी के अंदर का देव
अवतरित हो
जीवन सुधा बांट रहा है
तो किसी के अंदर का दानव
छल से विष पिला रहा है।

सनातन धर्म में ईश्वर के अवतार की मान्यता है। उन्हीं अवतारों में से मर्यादा पुरुषोत्तम राम और देवकी नंदन कृष्ण आज भी घर-घर पूजे जाते हैं, वर्तमान कलयुग में कल्कि अवतार होना है। उसी पर कवियित्री संवेदनशीलता के साथ लिखती हैं-
इस युग में भी
एक बार फिर तुम आओगे
कलि बनकर
ऐसा सुना है मैंने
किंतु
इस बार उलझने नहीं दूंगी
स्वयं को
तुम्हारी कजरारी अलकों में
नहीं बंधने दूंगी मन को
तुम्हारे प्रेम पाश में।

महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण के समय भगवान कृष्ण के सहयोग करने के प्रसंग पर कवियित्री ने मन का भाव इस तरह व्यक्त किया है-
तुम्हारी चोटिल तर्जनी पर
मेरे चीर का पट
क्या ऋण लगा था तुम्हें माधव
सुना है
भरी सभा में
जो तुमने मुझे अपमान से बचाया
वास्तव में उस पट का ऋण चुकाया
क्या सत्य है माधव।

संग्रह में शामिल ‘रियायत’ शीर्षक की एक कविता मन में गहराई तक उतर जाती है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है-
अबोले दिनों ने उसकी परीक्षा ली
उसने बड़े गैर जिम्मेदाराना तरीके से
परचे दिए
और फेल हो गया
और इस फेल होने का कोई
रंज भी उसे न हुआ।

इसी तरह संवेदनाओं से भरी एक अन्य रचना में कवियित्री कहती हैं-
अभी वह दोनों मिले ही थे
कि
उनके घर की
दीवारें ऊंची होने लगी
और शहर की गलियां तंग

काव्य संग्रह ‘पुष्कर विशे’श’ में निकी पुष्कर की कविताओं के साथ ही क्षणिकाएं भी हैं। एक क्षणिका में निकी कहती हैं-
प्रेम, परवाह और प्रतीक्षा
यही मेरी पूंजी है
वह भी
तुम पर खर्च कर देती हूं
फिर न प्रेम बचता है न परवाह
बचती है
तो सिर्फ प्रतीक्षा।

संग्रह में गूंगे का गुड़, स्त्री का रचना संसार, चालीस पार औरतें, प्रणय व्यूह जैसी कई रचनाएं मन में गहराई तक उतर जाती हैं।

प्रस्तुत काव्य संग्रह में जीवन के यथार्थ की कविताएं हैं। संपूर्ण काव्य संग्रह में कवियित्री की अन्तर्दृष्टि व सूक्ष्म अवलोकन की शक्ति प्रदर्शित होती है। हृदय के भावों की सहज अभिव्यक्ति, संवेदना की गहराइयों में डूबी हुई, परिपक्व विचारों की यह रचनाएं निसंदेह पाठकों के लिए प्रेरणादायक होंगी। संग्रह की सभी रचनाएं उच्चकोटि की हैं, जिन्हें पाठक पसंद करेंगे।

अंत में कवियित्री के उत्कृष्ट काव्य संग्रह ‘पुष्कर विशे’श’ के प्रति अपनी हार्दिक मंगलकामनाएं व्यक्त करता हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कवियित्री की यह कृति विशिष्ट काव्य संग्रह सिद्ध होगी।

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