निर्जला एकादशी व्रत: सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक नहीं पीना है पानी
निर्जला एकादशी
ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी निर्जला एकादशी (भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है)। इस एकादशी का महाभारत में वृतांत है, जो पाण्डवों के भाई भीम से जुडा है। इसी कारण उसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने वाला सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीता है। शास्त्र कहते हैं कि पानी पीने से व्रत टूट जाता है।
एक बार भीमसेन ने व्यास जी से प्रश्न किया कि हे पितामह, मेरे भाई तथा मेरी माँ एकादशी व्रत करने को कहते हैं। किन्तु महाराज मैं भगवान की भक्ति, पूजा, दान तो कर सकता हूँ किन्तु भोजन के बिना नहीं रह सकता। उस पर व्यास जी ने कहा कि हे भीमसेन यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग कॊ अच्छा समझते हो तो प्रत्येक मास की दोनों एकादशी को अन्न मत खाया करो।
इस पर भीमसेन ने कहा कि पितामह, ये सब तो नहीं मगर वर्षभर में कोई एक व्रत हो तो मैं कर सकता हूँ। क्योंकि मेरे पेट में “वृक” नाम की अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन बिना नहीं रह सकता हूँ। अतः आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताओ जिसे वर्षभर में एक ही बार करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाय। इस पर व्यास जी ने कहा वत्स. ऋषि मुनियों ने बहुत से शास्त्र बनाये हैं जिनसे विना धन के थोडे परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
ऐसा सुन कर भीमसेन घबराकर काँपने लगे, और व्यास जी से कोई दूसरा उपाय करने की विनती करने लगे।
एक कथा के अनुसार व्यास जी कहने लगे कि वृष और मिथुन की संक्रान्ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। इस एकादशी कॊ अन्न तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। हे भीमसेन तुम उस एकादशी का व्रत करो। उस एकादशी व्रत में स्नान और आचमन के शिवाय जल का प्रयोग वर्जित है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए और न ही जल ग्रहण करना। क्योंकि भोजन करने से व्रत टूट जाता है। इस एकादशी में सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है याने व्रत के अगले दिन पूजा करके व्रत का परायण करना चाहिए ।
व्यास जी ने भीमसेन को बताया कि इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान ने बताया था कि यह व्रत सभी पुण्य कर्मों और दान से बढकर है। इस व्रत को करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
व्रत विधान
एकादशी की प्रातः सूर्योदय के साथ ही स्नान ध्यान करना चाहिए, इसके बाद भगवान विष्णु की श्रद्धापूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन भगवान का ध्यान स्मरण व जप करने का विधान है। अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजा करके गरीबों, ब्राह्मणों को दान व भोजन कराना चाहिए। खुद भी भगवान का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करने के बाद भोजन करना चाहिए। यह व्रत वर्ष में एक बार आता है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी को श्रद्धापूर्वक करने वाले मनुष्य कॊ सहज ही स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। ॐ नमो नारायणः ॐ… तत्सत्
पं. राजेन्द्र प्रसाद (पंकज शास्त्री) केदारनाथ। उत्तराखण्ड हिमालय