परिवहन विभाग बना बनिए की दुकान, अपने ही कर्मचारी को कर रहा परेशान
-परिवहन विभाग सेवानिवृत्त अधिकारी- कर्मचारियों पर मनमाने निर्णय थोप रहा है। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त नरेंद्र नौडियाल के ग्रेच्युटी व नियमितीकरण से पहले हासिल किए लाभ में कर दी नियम विरुद्ध कटौती। इसकी सूचना अधिकार में जानकारी मांगने पर विभाग ने रोका उनके देयकों का भुगतान। विभाग से परेशान नौडियाल प्रकरण को हाईकोर्ट ले जाने कर रहे तैयारी।
शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rath news)। ‘जिस बस्ती का राजा अन्धा, काने पहरेदार, उस बस्ती का हाल बुरा है, कुछ कहना है बेकार। साहित्यकार प्रमोद नौड़ियाल ‘चंचल‘ की कविता की यह पंक्तियां उनके ही सेवानिवृति प्रकरण पर परिवहन विभाग की कारगुजारियों की पोल खोल रही हैं। परिवहन विभाग दलाली को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहता है। लेकिन, अब विभाग अपने ही कर्मचारियों का खून भी चूसने लगा है। पूरी जिदंगी विभाग को सेवा देने के बाद सेवानिवृत्ति पर विभाग उनके अर्जित किए लाभ हजम कर जा रहा है। इतना ही नहीं महीनों बीतने के बाद भी सेवानिवृत्ति के देयकों का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
वर्तमान में मामला परिवहन विभाग उत्तराखण्ड से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त प्रमोद नौड़ियाल का है। नौड़ियाल को वर्ष 1991 में परिवहन विभाग में कनिष्ठ लिपिक के पद पर तर्दथ आधार पर नियुक्ति (नियमित वेतनक्रम के आधार पर) मिली थी। प्रोन्नति पाते हुए 30 वर्षो की सेवा कर नौडियाल विभाग से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद से मई 2021 में सेवानिवृत्त हुए। वर्ष 1991 से नियमित वेतनक्रम के आधार पर सभी सरकारी अधिकारी/कर्मचारियों को प्राप्त होने वाले वित्तीय लाभों को उन्होंने ने भी अपने सेवाकाल में हासिल किया।लेकिन, विभागीय स्तर पर हुए कारनामें में नौडियाल की सेवानिवृति के बाद शासन के वर्ष 2018 में जारी एक आदेश के आधार पर उनकी ग्रेज्युटी में कटौती करते हुए, उसमें से उनके नियमितिकरण वर्ष 2004 से पहले प्राप्त हुए लाभ काट दिए। जबकि, उनके साथ के सभी समवर्गीय अधिकारी/कर्मचारियों को पूरा लाभ दिया गया।
सूचना अधिकार में नहीं दी जानकारी
सूचना के अधिकार के तहत जब समविषयक सूचना मांगी गयी तो विभाग ने यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि उक्त सूचना अभिलेखीय नहीं है। जबकि, विभाग के तहत कार्यरत व सेवानिवृत अधिकारी/कर्मचारियों के प्रकरणों पर बाकायदा पत्रावली बनाकर प्रस्ताव लेखाकार, सहायक लेखाधिकारी, वित्त नियंत्रक, सहायक परिवहन आयुक्त व अपर परिवहन आयुक्त के माध्यम से प्रस्ताव परिवहन आयुक्त को स्वीकृति के लिए अग्रसारित किया जाता है। परिवहन आयुक्त की स्वीकृति के बाद ही भुगतान की कार्यवाही की जाती है।
परिवहन विभाग ने छुपाई पत्रावलियां
उक्त पत्रावलियों को छिपाकर परिवहन विभाग की ओर से लेखा अनुभाग ने लेन-देन के आधार पर अनियमित कार्यवाही की सूचना उपलब्ध नहीं कराई। यदि परिवहन आयुक्त ईमानदारी से जांच करे तो एक बड़ा फर्जीबाड़ा सामने आ सकता है, जिसमें राजनीतिक छत्रछाया भी उजागर हो सकती है। विभाग की ओर से अन्य सेवानिवृत अधिकारी/कर्मचारियों को पूर्ण सेवा लाभ दिये जाने के प्रकरण पर जब कोषागार, पेंषन व हकदारी विभाग ने परिवहन विभाग के वरिष्ठ वित्त नियंत्रक से पूछा तो उनका जबाब है कि इन प्रकरणों पर चूक के कारण अन्य को लाभ जारी कर दिये गये। पेंशन विभाग उत्तराखण्ड के अधिकारी-कर्मचारी भी नौडियाल के प्रकरण में की गई कटौती पर हैरत जता रहे हैं। सवाल यह है कि क्या चूक होने पर जारी कर दिये गये लाभों को वापस लेने का पेंशन विभाग को अधिकार नहीं है। यदि नियम विरुद्व लाभ जारी किया गया है तो क्यों इस पर लाभ प्राप्त करने वाले अधिकारी/कर्मचारियों से उसकी वसूली नहीं की गयी। यदि सबको लाभ दिया गया है तो नौड़ियाल को क्यों नहीं दिया गया। विभागीय अधिकारी या तो जानबूझ कर मामले को नजरअंदाज कर रहे हैं या किसी सौदेबाजी में उनका हिस्सा है।
विभागों में गोलमाल
प्रकरण में प्रमोद नौड़ियाल ने कोषागार, पेंशन व हकदारी विभाग में शिकायत की तो शिकायती पत्र ही गायब करवा दिया। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत उक्त शिकायत पर हुई कार्यवाही की जानकारी मांगी गयी तो विभाग ने शिकायती पत्र प्राप्त न होने की सूचना दी। जबकि, पोस्ट आफिस की ओर से उक्त रजिस्टर्ड शिकायती पत्र पंजीकृत कराने के अगले दिन ही विभाग को दे दिए गए थे। अपील की सुनवाई करते हुए पेंशन विभाग के अपीलीय अधिकारी/अपर निदेषक ने बताया कि विभाग को शिकायती पत्र मिल चुका है। लोक सूचना अधिकारी के शिकायत प्राप्त न होने व अपीलीय अधिकारी के शिकायत प्राप्त होने की जानकारी देना, उजागर करता है कि , विभागीय अधिकारी किस प्रकार सूचना अधिकार अधिनियम के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। सवाल यह है कि सेवानिवृति के भुगतानों को स्वीकृत किये जाने वाले विभाग क्यों सूचना छिपा रहे हैं?
मानवाधिकार आयेाग ने मांगा जवाब
मामले में नौडियाल ने मानवाधिकार आयेाग उत्तराखण्ड से भी शिकायत की है। आयोग ने पेंशन विभाग को नोटिस जारी करते हुए 8 दिसंबर 2021 तक जवाब मांगा है। वहीं, नौड़ियाल परिवहन विभाग की ओर से किए जा रहे उत्पीड़न का प्रकरण उच्च न्यायालय नैनीताल ले जा रहे हैं। जिसमें सम्बन्धित विभागों द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न पर सम्बन्घित विभागों/अधिकारियो से सभी कटौती किये गये भुगतानों को मुआवजे सहित वापस दिलाने व सम्बन्घित अधिकारी/कर्मचारियों के खिलाफ दण्डनीय कार्यवाही करने का अनुरोध किया गया है।
जानकारी मांगने पर शुरू किया उत्पीड़न
नौड़ियाल के सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगने व प्रकरण मानवाधिकार आयोग ले जाने के कारण विभाग ने उनका उत्पीड़न शुरू कर दिया गया है। जीपीएफ का 10 प्रतिशत के अवशेष भुगतान नहीं किया जा रहा है। एक वर्ष से लंबित चिकित्सा प्रतिपूति भुगतान जो चिकित्सा विभाग की ओर से प्रमाणित किया जा चुका है, इसका भी भुगतान रोक दिया गया है। उजागर हुआ है कि मात्र विभागीय लेखाकार की मनमानी के कारण प्रकरण उलझा दिया गया है। जिसमे अधिकारी भी फंसे हुए हैं।