Fri. Nov 22nd, 2024

कवि शिक्षक जगदीश ग्रामीण की एक रचना.. सोच रहा हूं मैं इस यौवन में

जगदीश ग्रामीण ‘दर्द-ए-दिल’
रामनगर डांडा, थानों, देहरादून
—————————————-

सोच रहा हूं मैं इस यौवन में
इक गीत ऐसा भी लिख जाऊं
तुम गुनगुनाते रहो जीवन में
चुपके से अगर चला भी जाऊं

पथ निहारेंगे पल-पल प्रतिदिन
पाथर-पाथर अश्रुधार बहाएंगे
अर्ध्य देंगे भोर गाड गदेरे सब
तर्पण पुण्य तब पंदेरे कमाएंगे
गाय रंभाएंगी रोज वन वन में
कृष्ण की वंशी से राम-राम गाऊं

पुस्तकें मेरी प्रेमिका बन तेरी
गली-गली हर गीत सुनाएंगी
हर शाम महफ़िल-महफ़िल
हंसते-हंसते आंचल लहराएंगी
शब्द-शब्द सब जब नृत्य करेंगे
तुम संग-संग मदहोश हो जाऊं

वो होली की रंग बिरंगी मस्ती
दीवाली के दीप जगमगाएंगे
राखी पर देख बहिनों के बंधन
सूरज चंदा भी जश्न मनाएंगे
खुशबू फैलेगी हर घर आंगन में
त्योहार बन मैं हरषाता जाऊं

नीत नई है मगर रीत पुरानी है
आगे पीछे जाना है बारी-बारी
हंसते हंसाते राह चलते चलो
चार कांधों की करके सवारी
दर्द लिखा और भोगा जीवन में
सोचा आज दवा बताता जाऊं
—————————————————–

कवि परिचय
—————————–

जगदीश ग्रामीण
शिक्षक व कवि
निवासी– रामनगर डांडा, थानों, देहरादून।
संप्रति – राजकीय इंटर कालेज नागणी, टिहरी गढ़वाल में कार्यरत
आग्रह – रक्तदान, नेत्रदान, देहदान-
स्वयं भी नेत्रदान व देहदान कर चुका हूं।
15 वर्ष से निःशुल्क ट्यूशन पढ़ाता हूँ।
————————————————–
सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..25/12/2020
नोट: 1. उक्त रचना को कॉपी कर अपनी पुस्तक, पोर्टल, व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक, ट्विटर व अन्य किसी माध्यम पर प्रकाशित करना दंडनीय अपराध है।

2. “शब्द रथ” न्यूज पोर्टल का लिंक आप शेयर कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *