युवा कवि आलोक रंजन की एक रचना … मुंह पर हाथ रख कर कुछ औरतें घर देख रही है ..
आलोक रंजन
कैमूर,बिहार
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किस नज़र से
मुंह पर हाथ रख कर कुछ औरतें घर देख रही है,
अब क्या होगा ऐ ऊपर या नीचे किधर देख रही है।
इनके चेहरे के हाव-भाव से बिल्कुल नाराज़ हूं मैं,
इनकी बंद आवाज़ सुनकर जो कल था आज हूं मैं।
तेरे मेरे सबके घर के हाल चाल कैसे पता इनको,
सब-कुछ है करना बाल बच्चे, रोटी दाल जिनको।
गजब निहारती है ऐ नजरों से गली गांव समाज को,
आग भी लगता है लोग भी जलते हैं ऐसे राज को।
औरतें के नजरों बचाना ऐसे बहुत ही मुश्किल है,
पहली क्लास कालेज शादी तक आता दिल है।
आज भी देखती है वे कई समान पर हर शक से,
लड़ भी जाती है कभी अपनों से रिश्तों के हक़ से।।