साहित्यकार भारती पांडे की होली पर एक सुंदर रचना … कविता में उमगा त्यौहार
भारती पाण्डे
देहरादून, उत्तराखंड
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होली के रंग
वन कुंजन उपवन में
खिले प्रसून बहुरंग बहार
नवरस, नवरंग, ताल छंद नव
कविता में उमगा त्यौहार।
फागुन की गुनगुनि बयार
अवनी अंबर बसंत अवतार
पीत पताका, पीत पितांबर
पीत आभा निहार।
नवल बसंत की जाग मन मन में
प्रकृति ने किया श्रृंगार
पतझड़ की सूनी नगरी में
मुस्काया मधुमास
पादप पुष्प जन मन मोहे
आशा किरण संचार।
वर्ण वर्ण के बादल
ढोल ढपली मादल
सांध्य राग विहाग अनुराग जगा
भोर भैरवी आलाप
सखी!अद्भुत मेल मिलाप
क्षितिज दिशाएं रंग रंगे हैं
कौतुहल विस्तार।
आम्र मंजरी कर रहीं डाल डाल श्रृंगार
कुसुमाकर की टोलियां
कर रहीं मन मन मनुहार।
सेमल टेसु खिल खिल मुस्काते
झूमी प्रकृति नर-नार।