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युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की एक रचना… अगर यहां लाशें भी मतदान करती..

धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड

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अगर यहां लाशें भी मतदान करती,
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

चार वर्ष तक सुरक्षित रखे जाते मुर्दे ,
पांचवें वर्ष मुर्दे का पिण्डदान करती!

अगर यहां लाशें भी मतदान करती!
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

लाशों का अलग से पंजीकरण होता,
मरकर भी कहां उनका मरण होता!
सरकारी ख़र्च पर होती तेरहवीं-बरसी,
किसी योजना में सरकार गोदान करती!

अगर यहां लाशें भी मतदान करती!
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

कफ़न में डाला जाता किसी दल का झंडा,
अर्थी की लकड़ी में किसी दूसरे दल डंडा,
फिर राम नाम सत का नही उच्चारण होता
हर पार्टी वोट के लिए केश-विधान करती!

अगर यहां लाशें भी मतदान करती!
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

बस मुर्दों के वोट से जीते हुऐ नेता जी,
मुर्दों के द्वारा संसद में खींचे हुए नेता जी
न विद्रोह,न क्रांति, न उपवास न हड़ताल
ये बातें नेताओं की राह आसान करती!

अगर यहां लाशें भी मतदान करती!
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

मुर्दों का भी एक अलग लोकतंत्र होता,
उन्हें समझाने बुझाने का एक मंत्र होता,
सोशल- मीडिया की नही इजाज़त होती
सरकारें कुछ तो हटकर विधान करती!

अगर यहां लाशें भी मतदान करती!
तो सियासत लाशों का सम्मान करती!

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