कवि धर्मेंद्र अनियाल ‘धर्मी’ की एक रचना.. तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है..
धर्मेंद्र उनियाल धर्मी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
जब जब जनता देवतुल्य होने लगे
नेताओं के लिए बहुमूल्य होने लगे,
जब निःशुल्क सा बंटने लगे राशन,
और गली गली में जब गूंजें भाषण।
जब नेता पूछे , भाई सब ठीक है?
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
जब टूटी सड़कों में आए सुधार,
जब पुराने पुलों का हो जीर्णोद्धार
वृद्ध दिव्यांगो की खोज खबर हो
नेताओं को जब जनता का डर हो।
लगे सृष्टि का हर सुख समीप है,
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
जब नेता द्वार तुम्हारे आ जाए,
हाथ जोड़े और फिर शीश नवाए,
कुशल क्षेम और सुख दुःख पूछें,
गले लगाए और सबकुछ पूछें।
नेता स्वयं जब जन जन के बीच है,
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
दिखावे का जब झूठा समर्पण हो,
शिलान्यास हो और लोकार्पण हो।
जब जनता -जनार्दन समझी जाए
और जब मिट्टी भी चंदन बन जाए।
धर्म मज़हब जब सौहार्द प्रतीक है,
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
अखबारों में रोज़गार के विज्ञापन,
विधानसभाओं का शांत समापन।
नई कल्पनाएं धरातल पर आएं,
पुरानी योजनाएं रसातल पर जाएं।
झूठे जुमले चुनावी तकनीक है,
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।
ये जनता की मेहनत का है पैसा,
जो नए नए कर लगा कर है खैंचा
नेताओं के लिए भत्ते और पेंशन,
जनता को नित नई नई टेंशन।
लगे मंहगाई का मुंह तो बारीक है।
तो फिर समझो चुनाव नज़दीक है।