Fri. Nov 22nd, 2024

देश के सुप्रसिद्ध नवगीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र की एक रचना

डॉ बुद्धिनाथ मिश्र
देहरादून, उत्तराखंड

———————————————————–

रामजी की पढ़ाई

कुटाई पिटाई ठुकाई तुड़ाई
इन्हीं से हुई रामजी की पढ़ाई।

जरा-सी शरारत पे बनते थे मुर्गा
छड़ी थी हरे बांस की काली-दुर्गा
पहाड़ा जो भूला, पड़ी बेंत ऐसे
लगे याद आने बुजुर्गी-बुजुर्गा।
हरेक बात पर दोस्ती औ लड़ाई।
हरेक बात पर छिन भी जाती चटाई।

किसी के निकर औ कमीजें फटी थीं
वो टायर की चप्पल की एड़ी कटी थी
धरी होती बस्ते में बस स्लेट-पिलसिंग
किताबें नहीं थीं, किताबें रटी थीं
कुदालों से, खुरपी से खेती गुड़ाई
बड़ा पेड़ बनने की वह थी पढ़ाई।

कलम एक सरपत की आती थी बनकर
दमकते रहे मोतियों जैसे अक्षर
गुरूजी का रुतबा था बस्ती में ऐसा
पिता जी भी आते नहीं स्कूल डरकर
हरेक घर से देती सनिचरा थी माई
उसी से गुरूजी ने जिनगी निभाई।

वही दौर था जब गुलामी थी तन पर
मगर धूप ही धूप बिखरी थी मन पर
रहे जितने बाजार से दूर गुरुकुल
रहे उतने हम आचरण से भी सुंदर
बनी जब से शिक्षा भी काली कमाई
तभी से हुए हम नकलची हैं भाई।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *