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वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेश्वर उनियाल की उत्तराखंड को समर्पित एक रचना… ए मेरे उत्तराखंड

डॉ राजेश्वर उनियाल
मुंबई, महाराष्ट्र

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ए मेरे उत्तराखंड

ए मेरे उत्तराखंड, ए मेरे उत्तराखंड,
इक्कीसवाँ ये वसंत, छू गया मेरा मन।
राज्य है हमको मिला, तप था हमने किया,
हुतात्माओं को प्रथम, करते हैं नमन।

रेल सड़कों का जाल, बिछ रहा बेमिसाल,
बढ़ता आवागमन, बढ़ेगा पर्यटन।
यहाँ का बहता पानी, और ढलती जवानी,
पहाड़ों के आए काम, थमेगा पलायन।

होने लगा है विकास, बढ़ने लगी है आस,
पर याद आता मुझे, अपना बचपन।
यहाँ हैं बद्रि केदार, गंगा यमुना की धार,
ऊंचे हैं हिम शिखर, घर आँगन वन।

छूड़ाछोलिया छपेली,चाँचरीचौफुला न्योली,
ढ़ोल दमाऊ हुड़का, नाचती हर बान।
अपना गीत संगीत, तीज त्यौहारों की रीत,
जागर पंडौ मंडाण, झूमे बूढ़ा जवान।

बचे हमारी प्रकृति, बोली भाषा व संस्कृति,
अपना पहाड़ गाँव, व लोक परिधान।
देवभूमि है हमारी, पुण्यभूमि यह न्यारी,
तन मन व धन से, करें नित वंदन।

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