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गीता पति प्रिया की की रचना … पूनम का चांद

गीता पति प्रिया
दिल्ली


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पूनम का चांद

आज जब मेरी खिड़की पर पूनम का चांद नजर आया।
फिर वही बीता हर लम्हा याद आया।
वो चांद से नजरें मिलाना,
जी भर कर आहें भरना दिल खोलकर सब कह देना।

आज जब मेरी खिड़की पर पूनम का चांद नजर आया ।
फिर वही पुराना जमाना याद आया।
वह चांद से मन ही मन गुफ्तगू करना धीरे से
चुपके से फिर मेरे मन में उजाला फैलाना।
चांद का बादलों में छुप जाना।
कभी आंगन में आकर बातें करना ।
कभी अपनी धवल चांदनी से रोम-रोम पुलकित करना।

आज जब मेरी खिड़की पर पूनम का चांद नजर आया।
बीता हर लम्हा फिर याद आया।
चंदा तेरी चांदनी का मेरी खिड़की पर आना।
जैसे मेरे प्रेयसी का कोई संदेशा दे जाना।।
फिर वह इश्क की गलियों से पैगाम लाना।
तेरा वो मेरे पीछे पीछे आना।
फिर भी का हर लम्हा याद आया।

आज जब मेरी खिड़की में पूनम का चांद नजर आया।
आज जब मेरी खिड़की में पूनम का चांद नजर आया।

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