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गीता पति प्रिया की एक रचना … लेखन की सुंदर वाटिका में, मित्र कहां तक छुपोगे

गीता पति ‘प्रिया’
पश्चिम बंगाल

मित्र

लेखन की सुंदर वाटिका में, मित्र कहां तक छुपोगे

कब तक आंख मिचौली खेलोगे।
हम भवरे हैं एक कली के,
मंडराते हुए कभी मंच में।
कभी कविताओं में,
कभी आमंत्रित करोगे कविता की चार पंक्ति में।
कभी कविता के मंच में, कभी अनुभवों में,
तो कभी शब्दों में, हम टकरा ही जाएंगे,
कभी विषय सारणी में।

मगर लेखन की सुंदर वाटिका में मित्र कहां तक छुपोगे।

कभी तो प्रसंग बनकर निखरोगे,
कभी संदर्भ में,
तो कभी काव्य में,
कभी अर्थ में,
तो कभी शब्दों में टकरा ही जाओगे।
मगर लेखन की सुंदर वाटिका में
मित्र कहां तक चुप जाओगे।

कभी गद्य में, कभी पद्य में,
कभी तो मिलन होगा दोहे, छदो में।
मिलन पर कभी अपनी बातों पर पूर्न विराम लगाना।
कभी अल्पविराम में सब कुछ कह जाना,
कभी प्रश्न वाचक चिन्ह् लगाना?
कभी उपन्यास के पन्नों में,
कभी तो मुस्कराएंगे जीवन के हिस्से में।
मगर लेखन की सुंदर वाटिका में,
मित्र कहां तक चुपोगे।

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