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वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल …. तुम जिधर से भी गुज़रो मैं तुम्हारी राह में रहूँ

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड

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गज़ल

तुम जिधर से भी गुज़रो मैं तुम्हारी राह में रहूँ
मैं तुम्हारे दिल में रहूँ या तुम्हारी निगाह में रहूँ।

तुमको पाना तो सभी की चाहत हो सकती है
मगर तुम जिसको ढूँढ़ो मैं तुम्हारी चाह में रहूँ।

निश्छल प्यार की तुम जो भी राह दिखाओगे
मैं भी तुम्हारी हर नसीहत और सलाह में रहूँ।

प्यार को तो दुनियाँ भी गुनाह ही समझती है
मगर मैं तो प्यार की बेगुनाही के गवाह में रहूँ।

किसी के मज़हब से मुझे अब कुछ लेना नहीं
संग होना है तो मंदिर में रहूँ या दरगाह में रहूँ।

कभी ख़ुदा का पास मिले ना मिले दुःख नहीं
मैं तो बस आपकी मोहब्बत की पनाह में रहूँ।।

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