ओज के कवि जसवीर सिंह हलधर की एक रचना … हिन्दू की लाशों पर शासन, जिनका कारोबार रहा है
जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
-9897346173
—————————————————
कविता -जागो भारत वासी
हिन्दू की लाशों पर शासन, जिनका कारोबार रहा है।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है।।
अहंकार में झूल रही है, पी पी खून देश का खादी।
करतब इनके देख देख कर, खुश होते चाचा बगदादी।।
घाटी का रंग लाल हुआ रे, शोणित के छूटे फब्बारे,
आतंकों का ओढ दुशाला, दानव पैर पसार रहा है।।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है।।1
सिसक सिसक काशी रोती है, मथुरा भी आपा खोती है।
दिल्ली सीने पर पत्थर रख, मुगलों की लाशें ढोती है।।
हिन्दू सड़कों पर पिटता है, हिन्दू सरहद पर मिटता है,
चैनल पर संवाद देखकर, संविधान धिक्कार रहा है।।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है।।2
अभी नियंत्रण नहीं किया तो, देश हमारा बँट जायेगा।
हिन्दू मुस्लिम भाई चारा, ऐसा लगता फट जायेगा।।
लाल रंग के वस्त्र पहनकर, डायन धूम रही बन ठन कर,
एक पड़ौसी विषधर फिर से, सरहद पर फुंकार रहा है।।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है।।3
पाक हमारा जानी दुश्मन, समझो उसको कभी न भाई।
कीमत बड़ी चुकानी होगी, गलती यदि हमने दुहराई।।
कुछ बाबर को बाप बताते, अकबर की तस्वीर सजाते,
अपनो के ही हाथों “हलधर “, भारत घर में हार रहा है।।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है ।।4