कवि सुभाष चंद वर्मा… वे इनका वे उनका, अमन लूटते हैं..
सुभाष चंद वर्मा
देहरादून, उत्तराखंड
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दामन
वे इनका वे उनका, अमन लूटते हैं
वे फूलों से रोशन चमन लूटते हैं
सियासत में बहरूपिए बनके कैसे
अपने ही अपना वतन लूटते हैं।
वे इनका वे उनका…
दामन में उनके चमकते सितारे,
किसी की नैया किसी के सहारे,
फंसे जो भंवर में, होंसले टूटते हैं,
वे फूलों से रोशन, चमन लूटते हैं।
सियासत में बहरूपिए बनके कैसे,
अपने ही अपना वतन लूटते हैं।
वे इनका वे उनका..
दुनिया की नेयमत सब पास में हैं,
वे नंगे हैं लेकिन, लिबास में हैं,
हवाओं में उड़ती पतंग लूटते हैं,
वे फूलों से रोशन चमन लूटते हैं।
सियासत में बहरूपिए बनके कैसे ,
अपने ही अपना, वतन लूटते हैं।
वे इनका वे उनका…
उनकी सुमारी कुछ खास में है,
वे आम आदमी की तलाश में हैं,
लाशों के कैसे, कफन लूटते हैं,
वे फूलों से रोशन चमन लूटते हैं।
सियासत में बहरूपिए बनके कैसे,
अपने ही अपना, वतन लूटते हैं।
वे इनका वे उनका, अमन लूटते हैं,
वे फूलों से रोशन, चमन लूटते हैं,
सियासत में बहरूपिए बनके कैसे,
अपने ही अपना, वतन लूटते हैं।
वे इनका वे उनका…