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सुभाष चंद वर्मा….. रात में फिर, जगमगाना चाहते हैं..

सुभाष चंद वर्मा
विजयपार्क, देहरादून

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अस्तित्व

रात में फिर, जगमगाना चाहते हैं,
आदमी को राह दिखाना चाहते हैं।
धरना दिया है, जूगनुओं ने शहर में,
आशियाना अपना बचाना चाहते हैं।

गुरसलें अब, रेत में नहाती नहीं,
मीठे सुर में कोयल भी गाती नहीं।
दिखती नहीं हैं, बुलबुलों की टोलियां,
घर में गौरैया नज़र आती नहीं।
जंगलों को फिर बसाना चाहते हैं,
आशियाना अपना बचाना चाहते हैं।
रात में फिर जगमगाना चाहते हैं,
आदमी को राह दिखाना चाहते हैं।

चोरी हो रहे, पक्षियों के घोंसले,
बढ़ रहे हैं, तस्करों के हौंसले।
कुदरती आवास बचे न डालियां,
पशुओं के हक में, नहीं हैं फैसले।
जागे हुओं को, फिर जगाना चाहते हैं,
आशियाना अपना बचाना चाहते हैं।
रात में फिर, जगमगाना चाहते हैं,
आदमी को राह दिखाना चाहते हैं।

पेड़ भी दिखता नहीं अब नीम का,
कत्ल हो रहा, कुदरती हकीम का।
ज़हर से भरने लगी, आबो हवा,
घुट रहा है दम, आशीष और शमीम का।
जीव अपना, भविष्य बनाना चाहते हैं,
आशियाना अपना बचाना चाहते हैं।
रात में फिर जगमगाना चाहते हैं,
आदमी को, राह दिखाना चाहते हैं।

रात में फिर, जगमगाना चाहते हैं,
आदमी को राह दिखाना चाहते हैं।
धरना दिया है, जूगनुओं ने शहर में,
आशियाना अपना बचाना चाहते हैं।।

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