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कवि सुलोचना परमार उत्तरांचली की एक रचना… अग्नि परीक्षा

सुलोचना परमार उत्तरांचली
देहरादून, उत्तराखंड


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अग्नि परीक्षा

दौर कोई भी रहा यहां पर
अग्नि परीक्षा दी है मैंने।
सीता बन कुदी थी आग में
पवित्र हूँ बतलाया मैंने।

कहीं दुश्मन के हाथ लगूँ न
स्वयं जल गई खड़े खड़े।
कभी अस्तित्व बचाया उनसे
नाम थे जिनके बड़े बड़े।

घर की चौखट जब भी लांघी
तब भी दी है अग्नि परीक्षा।
चौखट के अंदर रहकर भी
अक्सर देती अग्नि परीक्षा।

मेरे देश की अग्नि परीक्षा
कड़े दौर में चल रही।
कहीं चीन उगले है आग तो कहीं पाक घुसपैठ हो रही।

कोरोना भी लेने आया
हम सबकी है अग्नि परीक्षा।
पास वही होगा मेरे यारा
जो खुद करेगा अपनी रक्षा।

अग्नि परीक्षा का दौर है देखो
दुश्मन भी है यहां सेंध लगाए।
क्या पता वो भी हो विभीषण
जिसको हम हैं गोद बिठाये।

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