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कवि सुरेश स्नेही की एक गढ़वाली रचना…हिमालै…

सुरेश स्नेही
देहरादून, उत्तराखंड


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मैं हिमालै छौं हे मनखी(भुला) त्वे धै लगाणू,
साख्यूं बटिन छौं मि जाडा मा थतराणू,
कर ना छेड़ छाड़ मेरा दगड़ा मा तू,
तेरी रक्षा मा छौं यखुली टपराणू।
मैं हिमालै छौं…

बगण दी मेरी गाड गदन्यूं कु तु पाणी,
जू धै लगैकि सदानि त्वेतैं रौन्दि भट्याणी,
कर न सांगडू यूंका बाटों खौणी माटू,
अपणा बाटा गाड गदनी छन खुजौणी

मैं हिमालै छौं…
ह्यूंकु पाणी ह्यूंद सैरू जमी जान्दू,
लेकि बरफौकु ढिकाण मैं सेयंू रान्दू,
करदी चोट खौणदी पाखों जब तु मनखी,
गात मेरू निन्द मा यख चचलान्दू,
मैं हिमालै छौं…

कूड़ा करकट लौ ना मनखी मुण्ड मा मेरा,
हर्यूं रणद्या बण न काटा डाळा सैरा,
ना बिगाड़ रूपमेरू यख ऐकि मनखी,
रूड़ी ह्यूंद सदानि छौं मैं दगड़ा तेरा,
मैं हिमालै छौं…

छप्पन कोटि देवता करदन मैमा बास,
सुखी शान्ति रौउ मनखी तौंकि आस,
धीर-धिरगम तोड़ ना तू तौंकू मनखी,
सी पल परलै लैकि कर देला बिणांस।

मैं हिमालै छौं हे मनखी(भुला) त्वे धै लगाणू,
साख्यंू बटिन छौं मि जाडा मा थतराणू,
कर ना छेड़ छाड़ मेरा दगड़ा मा तू,
तेरी रक्षा मा छौं यखुली टपराणू।
मैं हिमालै छौं…

हिमालय दिवस की सब्बी हिमालय वास्यूं तैं बहुत बहुत शुभकामना। सब्यूं से अनुरोध च कि हिमालय तैं स्वच्छ रखा साफ रखा।

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