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कवि/गीतकार वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” के गढ़वाली में दो छंद (मनहरण घनाक्षरी) 

वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड 


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 मनहरण घनाक्षरी छंद 

1-
पाड़ देखा रोणु छ यू, तुम तैं बुलौणु छ यू
बौड़ी आवा भै-बंधौं कि, हाल पुछि जावा जी।

यखुली यखुली अब, निरासेणु ज्यू मेरु बि
मुख मोड़ि तुम यनु, मि न बिसरावा जी।

गौं क गौं ह्वेगिन बांजा, तिबारि डिँड्यली छाजा
रोणा छन दणमण, यनु नि सतावा जी।

बदरी केदार दैणा, ह्वै जावू ऐंसू क साल
राजी खुशी बौड़ि तुम, घौर ऐ बि जावा जी।।

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2-

मायादार कि मुखड़ी, प्यारी जोन कि टुकड़ी
कै म नी बताई पर, ज्यू म व समाइं च।

आंख्यूं म रिटणि रैंदि, यखुली नि रैण देंदि
दगड़ दगड़ गैल्या, सुपिन्यूं म आईं च।

स्वाणि स्वाणि जिंदगी क, दिनौं म अलझि ग्युं मि
दगड़ू ह्वै जालू यनि, कि आस लगाईं च

बरसू बरसू बिटि, बाटू तेरू देखि देखि
माया कि कुटरी सचि, त्वै खुणि बचाई च।।

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