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जन्माष्टमी पर विशेष: कवि/गीतकार वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” का सार छंद में एक गीत

वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड


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मोहन राधा

रास रचाते मोहन राधा, गीत बांसुरी गाती
कालिंदी के तट पर उनकी, प्रीत खूब मुसकाती
नयन बांचते मन की भाषा, दोनों हैं हमजोली
चित समाये एक दूजे के, प्रीत रंग की होली
पवन मोहनी साथ निभाती, राधा से बतियाती
धानी चुनरिया मनमोहन के, अधरों को छू जाती

रास रचाते मोहन राधा, गीत बांसुरी गाती
कालिंदी के तट पर उनकी, प्रीत खूब मुसकाती

राधा मोहन, मोहन राधा, खुशियों का ही डेरा
आठों याम समर्पित होकर, प्रीत लगाए फेरा
चंचल चितवन प्रतिपल डोले, चातक और चकोरी
बालेपन की पावन लीला, नित ही हंसी ठीठोरी
बांसुरिया जब बोल बोलती, तट मधुवन हो जाता
पग पग पर कुसुम बिखरे हों, नित परिमल लहराता

रास रचाते मोहन राधा, गीत बांसुरी गाती
कालिंदी के तट पर उनकी, प्रीत खूब मुसकाती

नीर भरन को लाई मटकी, बैठी खाली खाली
पिया मिलन को चली प्रेयसी, प्रीत हुई मतवाली
नूपुर बोलते पायलिया से, झूम झूम कर नाचें
अनमोल बड़े हैं ढाई आखर, आओ हम भी बांचें
मतवाला हो गया नीर भी, चित करे रुक जाए
विधना का आदेश नहीं है, अविरल बहता जाए।।

रास रचाते मोहन राधा, गीत बांसुरी गाती
कालिंदी के तट पर उनकी, प्रीत खूब मुसकाती।।

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