Fri. Nov 22nd, 2024

कवि वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” की कुछ क्षणिकाएं…

वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
—————————————-

1-

सच
————-

पहले
खिल उठता था मुखड़ा
मिलने पर

उल्लासित मन
कर देता था बयां
रिश्ते की गहराई मन

अब
मिलना पड़ता है
गले।

2-

दर्द
—————–

टूटा रिश्ता
जमीन पर गिरे
पेड़ के पत्ते जैसा

जमीन पर गिरा पत्ता
या तो उड़ जाएगा
कहीं दूर..बहुत दूर
या
कुचला जाएगा
पैरों तले।

3-

खुशी
——————

तिलक की चमक
माथे पर ही नहीं
होती है मन पर भी

था वर्जित
जिस माथे पर तिलक
जब लगा तो…
चमक उठा था मन।

4-

तो?
———–

चलो
बातें बंद कर दें

मिलना छोड़ दें

मिलने पर
देखना छोड़ दें

देखने पर
अहसास दबा लें

इतने गहरे
कि, पहुंचा दें उन्हें
पाताल तक

लेकिन, यदि वो
उग आएं फिर
मन की धरती पर

तो…

5-

बैराग
—————

कुछ तोल दो
कुछ बोल दो
कुछ अनमोल दो

प्यासा है मन/सदियों से

मिल सकता है सब कुछ
बस, मांगना छोड़ दो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *