पश्चिमी बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा लोकतंत्र का काला अध्याय, प्रज्ञा प्रवाह ने प्रेस वार्ता में दिए आंकड़े
-प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी क्षेत्र (उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड) ने आयोजित की ऑनलाइन प्रेस कान्फ्रेंस। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हुई हिंसा पर चिंता व्यक्त की। कांफ्रेंस में हिंसा के तथ्य व आंकड़े प्रस्तुत किए गए, जोकि चौंकाने वाले हैं।
शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rath news)। पश्चिम बंगाल में हाल में संपन्न हुए चुनावों के बाद हुई व्यापक हिंसा भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बन गई है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है कि अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को निशाना बनाया गया है। यह बात प्रज्ञा प्रवाह की ऑनलाइन प्रेसवार्ता में कहीं गई। प्रज्ञा प्रवाह से जुड़े बुद्धिजीवियों ने हिंसा पर चिंता व्यक्त की। साथ ही उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट प्रकरण का स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा।
प्रज्ञा प्रवाह (पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड) ने रविवार आज ऑनलाइन प्रेसवार्ता का आयोजन किया। प्रेसवार्ता में बंगाल में हुई हिंसा को लेकर तथ्य व आंकड़े प्रस्तुत किए गए। प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक भगवती प्रसाद राघव ने कहा कि बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों व समर्थकों पर की गई हिंसा में कुल 1320 एफआईआर दर्ज हुई हैं। इसके अलावा भय से पलायन कर असम के धुबरी जिले में पहुंचे शरणार्थियों ने भी 28 एफआईआर दर्ज कराई है। दर्ज हुई प्रथमिकियों में हत्या, महिला उत्पीड़न के 29 मामले हैं। इसके अलावा चुनाव के बाद भी मारपीट, लूटपाट, तोड़फोड़, आगजनी व धमकी आदि के मामलों में प्रथमिकी दर्ज हुई हैं।
उन्होंने कहा, जानकारी मिली कि सत्ताधारी दल के दबाव में अधिकांश मामलों में प्राथमिकी दर्ज ही नहीं हुई हैं। लगभग 4400 दुकान व मकान हमलों में क्षतिग्रस्त हुए हैं। 200 मकान पूरी तरह से जमींदोज़ किये गये। पूर्व बर्धमान के औसग्राम में एक पूरी बस्ती को ही फूंक दिया गया। अपने घरों को छोड़ 6788 लोग असम के 191 शिविरों में शरण लिये हुए हैं।
राजनीतिक प्रतिशोध से शुरू हुई हिंसा मजहबी उन्माद में बदली
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष विजय साँपला ने भी प्रशासनिक उदासीनता व भेदभाव की पुष्टि की है। आठ दिन तक निर्बाध चली हिंसा में दलित व जनजाति वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ है राजनीतिक प्रतिशोध से शुरू हुई हिंसा जल्द ही मजहबी उन्माद में बदल गयी। जिस नंदीग्राम से खुद ममता बनर्जी ने चुनाव लड़ा और हार गईं, वहां तृणमूल के हिंदू समर्थकों पर भी हमले हुए। हिंदुओं को खदेड़ने के उद्देश्य से उनके खलिहानों में आग लगाने व तालाबों में जहर डालने की घटनाएं भी प्रकाश में आई हैं।
भाजपा पदाधिकारियों पर लगाया गया अर्थदंड
पद्मभूषण पत्रकार, लेखक, राजनैतिक विश्लेषक भाजपा के पूर्व राज्य सभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने कहा कि कई इलाकों में भाजपा पदाधिकारियों पर जजि़या की तर्ज पर अर्थदंड भी लगाए गये हैं। उन्होंने चुनाव के बाद भी 2 व 3 मई को हुई हिंसा पर विस्तृत चर्चा की साथ ही साथ रोहिणी पश्चिम बंगाल में घुसपैठ व उनके राजनीतिक प्रभाव एवं आंकड़ों के साथ बड़ी संख्या में जनता पर हो रहे अत्याचारों पर प्रकाश डाला। प्रज्ञा प्रवाह ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भड़काऊ बयानों और संविधानेतर आचरण की भी आलोचना की। सनद रहे कि दुर्गा पूजा पर रोक जैसी तुष्टीकरण की नीतियों के द्वारा ममता मजहबी उन्माद को बढ़ावा देती रही हैं। चुनाव के दौरान भी ममता और उनके मंत्री केंद्रीय बलों के लौटने के बाद विरोधियों को देख लेने की धमकी देते रहे हैं। हिंदू समुदाय पर आये अस्तित्व के खतरे व तेजी से बदलते जनसंख्या अनुपात की दृष्टि से अति संवेदनशील पश्चिम बंगाल में विषय की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को कार्रवाई करनी चाहिए।
ऑनलाइन प्रेसवार्ता में प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक भगवती प्रसाद राघव, डॉ चैतन्य भंडारी अध्यक्ष देवभूमि विचार मंच, डॉ देवेंद्र भसीन भाजपा उपाध्यक्ष उत्तराखंड व मीडिया प्रभारी, डॉ वीके सारस्वत, अवनीश त्यागी, डॉ अंजली वर्मा, अनुराग विजय, प्रवीण तिवारी, नमन गर्ग, डॉ पृथ्वी काला, प्रमुख विचारक विकास सारस्वत दिव्य कुमार, डॉ रवि शरण दीक्षित आदि मौजूद रहे।