प्रतिभा की कलम से … Snow white “auli”
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित ‘औली’ एक छोटा सा हिल स्टेशन है। समुद्र तट से लगभग ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह ख़ूबसूरत वादी इन दिनों बर्फ से ढकी हुई है। लॉकडाउन के कारण दो साल से मंद पड़ी पर्यटकों की आवाजाही अचानक तेज हो गई है। निकटतम स्टेशन जोशीमठ से औली पहुंचने के लिए रोपवे की व्यवस्था है। लेकिन, पर्यटकों की भीड़ यदि ज्यादा है तो टिकटों की भी एक सीमा है, तब जोशीमठ से वहां तक का सोलह किमी लंबा बर्फीला रास्ता गाड़ी से तय करना ही एकमात्र विकल्प है।
बर्फ़ पर गाड़ी चलाना आसान काम नहीं है। बर्फ़ गलाने के लिए लोक निर्माण विभाग की नमक से भरी बोरियों भरी गाड़ी के पीछे-पीछे कभी कछुआ तो कभी खरगोश की चाल में चलते-चलते यह रास्ता नापना बड़ा रोमांचक है।
चीड़ और देवदार की बर्फ़ ढ़की पत्तियों को हिलाकर ताज़ी गिर रही बर्फ़ जैसा एहसास लेते फोटो खिंचवा रहे पर्यटकों को देखना अच्छा लगता है। पक्षियों का कहीं नामोनिशान नहीं है। पता नहीं कहां दुबके पड़े होंगे इस ठंड में। इक्का-दुक्का अगर कोई दिख गई तो उसके पीछे नज़र घुमाने में लंगूरों से अच्छादित पेड़ दिख जाना भी मज़ेदार है। औली पहुंचने पर सबसे पहले स्वागत करता है गढ़वाल मंडल विकास निगम का स्की रिसॉर्ट । कुछ सीढ़ियों का सफर तय करने के बाद आपके लिए सुविधा है चेयर लिफ्ट की। उसी के माध्यम से तो आपको आरोहण करना है इस स्वर्ग पर।
चेयर लिफ्ट में बैठकर इस बर्फ़ ढ़की वादी के ऊपर से गुजरना एक अद्भुत अनुभव है। ज़मीन और मकान की छतों पर बिछी हुई बर्फ की मोटी-मोटी परतों और ताज़े फाहों के सफेद ख़ूबसूरत जलवों के आगे बोलती बंद हो जाती है। चेयर लिफ्ट से उतर कर आगे बढ़ने पर बर्फ़ पर पड़ रही धूप ऐसी लगती है जैसे चांदी के रंग वाली कोई परी अपने सुनहरे पंख फैलाए बुला रही है आपको अपने पास।
पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ है। लेकिन, दायरा विस्तृत होने के कारण दो गज दूरी का नियम स्वत: अनुपालन हो रहा है। स्कीइंग वाले आपके इंतजार में खड़े हैं। टायर पर लेटकर फिसलते हुए लोगों के लिए बने-बनाए रास्ते से परे गहरी बर्फ़ में जिधर पांव घुसा लें उधर ही रास्ता बन जाने का खेल भी अच्छा है। कहीं मैदान, कहीं घाटी का दृश्य उपस्थित करती इन हसीन वादियों में एक जमी हुई झील भी है। विंटर गेम्स के लिए कृत्रिम बर्फ़ तैयार करने के उद्देश्य से उत्तराखंड पर्यटन ने इसका निर्माण करवाया है।
ठंड बहुत है मगर चटक धूप में ज़्यादा महसूस नहीं होती। चलते-चलते गला सूख रहा है तो पानी पी बिसलेरी की खाली बोतल कहीं भी फेंक अपना बोझ कम हुआ जान राहत की सांस लेते पर्यटकों को अब भूख भी महसूस होने लगी तो वह मैगी प्वाइंट की ओर आएंगे । मैगी और चाय का स्वाद लेते पर्यटकों की संख्या के साथ ही जूठे प्लास्टिक कप और फटे रैपर्स का ढ़ेर भी वहां फैलता हुआ नज़र आ रहा है।
दुकान छोटी है इसलिए अपनी बारी का इंतज़ार करते बाकी लोग चिप्स, बिस्कुट, नमकीन खाकर बर्फ़ पर चहलकदमी का आनंद ले रहे हैं। जनवरी अंत और फरवरी-मार्च में अभी बर्फ़ और पड़ेगी और प्लास्टिक का यह सारा कचरा इसमें दब जाएगा। लेकिन, अप्रैल से जब बर्फ़ पिघलनी शुरू होती है तो छोटी-छोटी फूलों संग हरी मखमली घास से भरी मोरपंख सी प्रतीत होती ये यह धरती प्लास्टिक कचरे के इस दाग़ को कैसे छुपा पाएगी, यह कोई नहीं सोचना चाहता!
आसमान ने बर्फ़ की नेमत बरसा कर इसे स्वर्ग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और हम हैं कि जहरीला कचरा जहां-तहां छोड़कर इसे नर्क बनाने पर तुले हुए हैं। सुनते हैं कि एवरेस्ट चढ़ने वाले पर्वतारोहियों को एक अच्छी-खासी रकम इस शर्त पर नेपाल पर्यटन के पास जमा करवानी पड़ती है कि अपने साथ ले गए प्लास्टिक को वह वापस बेस कैंप में जमा करवाएंगे। हमारे प्रदेश में भी यही नियम लागू हो जाए तो कितना अच्छा हो! पर्यटक स्थलों की सेहत दुरुस्त रहनी चाहिए वरना देवभूमि को दैन्यभूमि में बदलते देर नहीं लगेगी।