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प्रतिभा की कलम से… विद्युत अक्षरों वाला प्रॉमिस डे

प्रॉमिस

एक शताब्दी पहले की बात है जब संयुक्त राज्य अमेरिका (ओहियो) के एक गरीब परिवार में एक बच्चे ने जन्म लिया। अन्य बच्चों की तरह ही समय पर उस बच्चे का भी स्कूल में दाखिला हुआ। गरीब होना उसकी विशेषता नहीं, शैतान होना उसकी पहली पहचान थी।
हद से भी हद दर्जे के शैतान उस बच्चे ने अपनी शैतानियों से स्कूल में सबकी नाक में दम कर दिया। जायज लेकिन, अपनी उम्र से ज्यादा जानने की चाह वाले उसके सवालों से परेशान उसकी अध्यापिका ने अपनी नाक बचाने के लिए उस बच्चे को मंदबुद्धि घोषित करते हुए स्कूल से उसका नाम काट कर उसकी माँ को उसे घर पर ही रखने संबधी एक चिट्ठी लिखी। माँ ने पढ़ा, समझा लेकिन, बच्चे के पूछने पर उसे समझाया कि “तुम बहुत ज़हीन हो। स्कूल वाले तुम्हें पढ़ा सकने के काबिल नहीं, इसलिए अब से तुम्हें मैं घर पर ही पढ़ाऊंगी”।
बच्चे के अंदर अपराधबोध या हीनभावना जागने के बजाय एक खास विश्वास पैदा हो गया कि वो साधारण नहीं, कोई ‘खास’ बच्चा है। उसकी माँ ने भी मन ही मन उससे वादा किया कि तुम्हारा विश्वास मैं कभी टूटने न दूंगी। बेटे को विज्ञान में विशेष रूचि थी। चिड़िया की तरह उड़ सकने की नीयत से नौकरानी की बेटी को कीड़े पीसकर खिला देने से लेकर कई अन्य मूर्खतापूर्ण प्रयोग दोहराने के क्रम में दस हजार असफल प्रयोग करने के बाद भी उसने माना कि वो सब एक सफल आविष्कार की मंजिल की राह में पड़ने वाली सीढ़ियां थीं।
इस तरह बिना निराश हुए एक दिन उसने विद्युत बल्ब का आविष्कार कर धरती के अँधेरों को बिजली के उजाले से रोशन कर दिया। एक माँ के विश्वास की ताकत ने सूरज के पराक्रम को चुनौती दी थी उस दिन। बेटे का नाम था थॉमस अल्वा एडीसन।

आइये इस महान वैज्ञानिक के जन्मदिन 11 फरवरी को आज हम माँ के विश्वास और बेटे के वादे को समर्पित कर उजली सभ्यताओं के इतिहास में प्रॉमिस डे को ‘विद्युत अक्षरों’ में अंकित कर देते हैं ।
प्रतिभा की कलम से

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